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पदक-पासमारी मुनि श्री बालक ऋषिजो हक
उत्तर पुरच्छिमे दिसीभाए रेवतगे नामं पत्रए होत्या, तुंगगगणतलमणुलिहंतसिहरे, नाणाविह गुच्छगुम्मलयावलिपरिगए, हंसमिग मयूर कोंच सारस बकवाय मयण साल कोइल कुलोक्वेए, अणेगतड कडग विवर उज्झर पावाय पन्भारसिहर पउरे. अच्छेरगण देवसंघ चारण विजाहर मिहुण संविचिण्णे निच्चच्छण दसारवर वीर पुरिस तेलोकबल वगाणं, सोमे सुभगे पिय दसणे सुरूबे पासादिए दरिसणिज्जे ।
भभिरून पटिरूवे ॥ ३ ॥ तस्सणं रेवयगस्स अदूरसामंते तत्वणं गंदणवणे गाम । नगरी के बाहिर ईशानकून में रेवतक (गिरनार ) नाम का पर्वत था. पर ऊंचा गगनतम को पांच से शिखरवाला, विविध प्रकार के गुज्य, गुल्म, लता बड्डी से मेराया सावा. उस पर स, एम, पयूर, काँच, सारस, चाक, मदनशाल व कोकिल वगैरह पक्षियों का समुहवा, भनेक पर्वत के तट रो हुपे,. बनेक कटक-पर्वत पर से नीचे परे हुवे अघटित शिलारप पाषाण थे, और भरणे के प्रताप से उस के शिखरों किंचित नीचे नमे हुए थे. उस पर अप्सरा के गण, देवसंघ चारण पियाघरों के युगलों। सदेव महतो, उस पर तीन छोक में अतुलबब्बाले दशारवंश के समुद्रविषयादि श्रेष्ठ रानाभों का उत्सव हा होता था, वैसे ही सौम्य, मुंभग, देखने में प्रिय, सुप, आनंदकारी, दर्शनीय, अभिप प्रतिरूप था.॥३॥ रस गिरनार पर्वतकी पास नंदनवन नायका पचान था. इसमें सब ऋतु के
•प्रकाश राजावहादुर मालपुसदेवसहायजीपालाप्रसादजी.
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