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सूत्र
14 गदह सोक्खं || १ || इयरओ अणत्थपरंपराओ पावंत पाचकम्मवसा, संसार सागरगया, गोमा ओग्गसिया कुम्मोव्व ॥ २ ॥ चउत्थं नायज्झयणं सम्मतं ॥ ४ ॥ करने से व रागद्वेष से रहित होने से जीत्र मोक्ष सुख प्राप्त कर सकता है ॥ १ ॥ जैसे पापी मृगालकों ने इन्द्रियों का गोपन नहीं करनेवाला कूर्म को मार डाला वैसे ही इन्द्रियों का गोपन नहीं करनेवाले पापी जीवों पाप कर्म के वश से संसार रूप समुद्र में परंपरा से अनर्थ को प्राप्त करेंगे. इस दृष्टांत में द्रह सो संयम, कूर्म रूप साधु, ग्रीवा व चार पांव रूप पांचों इन्द्रियों, पापी शृगालक रूप स्त्रियादिक के विषय, द्रह के पास का स्थान सो भिक्षास्थान. यह कथन गुहे द्रय व अगुप्तेन्द्रिय के विषय में कहना ॥ ४ ॥ इति चाथा अध्ययन समाप्तम् ॥ ४ ॥
अर्थ
48 अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋपिजी
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० प्रकाशक - राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्यालाप्रसादजी,
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