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सूत्र
अर्थ
अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
उज्जणस्स सिरिं पच्चाणुब्भवमाणा विहरत्ता; तमेव जाणं दुरुदासभाणा जेणेव चंपा नगरा जेणव देवदत्ताएँ गणियाए गिहे, तेणेव उत्रागच्छति २त्ता देवदत्ताएहिं अणुपविमति २ देवदत्ताए गणियाए विपुलं जीवियारिहिं पीइदाणं दलयति २त्ता, सकारेति सम्माति २त्ता देवदत्ताए गितो पाडेनिक्खमति २त्ता जेणेव सयाई २गिह इं तेणेव उपागच्छति रुकम्म उत्ता जायाया विहेोत्था ॥ १६ ॥ ततेणं जे से सागरदत्तपुत्ते सत्थाहदारएणं कल्लं जाय जलते जेणेव से वणमऊरी अंडए तेणेव उवागच्छते २त्ता तसि मऊरी अंडयंसि संकिते कंखिते वितिगिच्छसमावन्ने भयसमावन्ने स्थपर बैठकर आये थे उस ही रथपर बैठकर चंपनगरी में देवदत्ता गणिका के गृह गये. उस के घर में प्रवेश कर उस गणका को आजिविका चले वैसा प्रीतिदान दिया. सत्कार किया, सम्मान किया. फोर उस के गृह में नीकलकर अपने २ गृह आये और अपने कार्य में प्रवृत्त हुए. ।। १६ ।। इन में से सागरदत्त नामका (सार्थवाह का पुत्र वह प्रभाव होते उस वन मयू के अण्डे के पास गया. इस मे उसे शंका हुई. कि {इम में मयूरी हागा या नहीं, कौन जाने इम में कब मयूरी होगा, वितिमिच्छा-ऐसा करने से फल का मासि होती है क्या ? यदि उत्पन्न होगा तो क्या यह कला का अभ्यास करेगा या नहीं यो द्विधाभाव अस
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• प्रकाशक- राजा बहादुर लाला सुखदेवमहायजी ज्वालाप्रसादाजी क
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