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ते सत्यवाहदारए एजमाणे पासति २ ता भीया तत्था महया २ सद्देण केकारवं विणिम्मुयमाणी २ मालुया कच्छाओ पडिणिक्खमंति पडिनिक्खमित्ता, एगंसि रुक्खडालयंसि ठिच्चा, ते सत्यवाह दारए मालुया कच्छयंच पविसमाणा अणिमिसाए दिट्टीए.पेहमाणी२ चिट्ठति॥१४॥ततेणं ते सत्थाह दारगा अन्नमन्नं सदावेति २त्ता एवं वयासी-जहाणं देवाणुप्पिया ! एसावणमऊरी अम्हे एजमाणे पासित्ता भीता तत्था तसिया उविग्गा पलाया महता २ सदेणं जाव अम्हे मालुया कच्छयंच पेहमाणीए २ चिट्ठति, तं भवियवमत्थ कारणेणं तिकट्ठ मालुया कच्छयं अंतो अणुपविसंति २त्ता बडे २ कैकारव शब्द करती हुई मालुका कच्च में से निकलकर एक वृक्ष की डाल पर बैठकर उन सार्थवाह के पुत्रों व मालुया कच्छ दोनों को अनिमिष नेत्रों से देखने लगी॥ १४॥ उस सपय वे दोनों*
पुत्रों परस्सर बेलने लगे कि अहो देवानुप्रिय! जब यह वन मयूरी अपने को आते दुवे देखकर डरी, त्राम 15पायी, उद्वग्न हुई और बडे २ शब्दों से कैकारव करती हुई यावत् अपन को कमालुया कच्छ दोनों को
देखने लगी है तब इस में कोई कारण होना नाहिये. ऐमा करके वे दोनों उस मालुया कच्छ में गये वहां 12 पर्याय को प्राप्त ऐमे दो बडे अंडे देखकर परस्पर कहने लगे कि अहो देवानु प्रय ! अपने इ१ बन
अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलख कपनी T
• पकायाक राजाबहादुर लाला मुखदेवसप्रयजी ज्वालापसादरी.
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