SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 217
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ न ज्ञाताधर्मकथा का प्रथम श्रतन्ध ... देवदत्तए सहि तं विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं व पुष्फ गंध वत्थं आसाए मागा विसाएमाणा परि जमाणा एवं चणं विहरति, जिमिया भुत्तुत्तरागया वियणं समाणा देवदत्ताए सहिं विपुलाति माणुस्सगाई कामभोगाइं भुजमाणा विहरंति॥११॥ ततेणं ते सत्थवाहदारगा पच्चावरण्ह काल समयसि देवदत्ताए गणियाए सहिं थुणा मंडवालो पांडनिक्खमंति २, हत्थ संगिल्लीए सभूमिभागे बहुसु आलिघरएसुय कयलीघरे मुय, लयाघरे मुय, अच्छाण घरेसुय, . पेच्छणघरेसुय, मोहणघरेसुय, पासाणघरेसुय, मालाघरसुया जालघरेसुय, जाव कुसुमघरेसुय उजाणंसिरि पच्चणब्भवमाणा विहरंति ॥ १२ ॥ तएणं ते सत्यवाह दारया जेणेव से मलयाकच्छए तेणेव पहारस्थगमणाए ॥ १३ ॥ तएणं सा वणमऊरी घिर ग, जीम कर तृप्त हुवे पीछे : वदत्ता की साथ विपुल मनुष्य संबंधी काम भोग भोगते हुवे sir विचरने लग ॥ ११॥ दिन के पीछे के भाग में व दोनों शेठ पुत्रों उस गणिका की साथ थूण मंडप में से निकलकर हाथों के आलिग करते हुवे उम सुभमि भाग उद्यान के आग्रह केली के घर में लता के घर Aमें अच्छदन घर में, प्रेक्षा घर में, मोहन घर में, पाषानों के घर में, मला के घर में,जाली के घर में यावत् । on'कलम गृह में उद्यान की शोभा का अनुभव करते हुवे विचर रहे थे।। १२॥ वहां सचे सार्थवाहके पुत्र मालुका कच्छकी पास ये ॥१३॥ उन दोनों सार्थवाह के पुत्रों को आते हुरे देखकर वह वन मयुरी भयभ्रान्तबनी त्रस पाकर - मयूरी के अंडेका तीसरा अध्ययन 42+ अथ Eye । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy