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+ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
रेणं रायकजाओ अप्पाणं विमोइए ॥ ४९ ॥ ततेणं सा भद्दा धणं सत्थवाहं एवं षयासी-कहणं देव णुप्पिया ! मम तुट्ठीवा जाव आगंदे भविरसति, जेणं तमं मम पुत्तघायगरस आव पच्चमित्तस्स तओ विपुलाओ असणं पाणं खाइमं साइमं संविभागं करोसि।ततणंस धणे सत्यवाहि भदं सत्थवाहिं एवं वयासीनो खलुदेवाणुप्पिए धम्मोत्तिबा तोचिया कइपडिकइयावा लोगजत्तातिवा, नायएतिवा संघाडियाएइवा सहाएतिवा सुहितिवा तउविउलाउ असणं पाणं खाइमं साइमं संविभाए कए; णण्णत्थ
सरीर चिंताए ॥ ततेणं सा भदा धण्णणं सत्थवाहणं एवं वुत्ता समाणी हट्टतुट्ठा जाव क्यों कि में मेरे ही पैसे से राज्यकार्य से मुक्त हुवा हूं ॥ ४९ ॥ तब भद्रा भार्या धनामार्थवाह को बोली
हो देवानुप्रिय ! जब तुमने मेरे पुत्र धातक यावत् दुश्मन को विपुल अशनादि में से विभाग करके दिया तब मुझे कहां से आनंद होवे ? तब धन्ना सार्थवाह वाले, अहो देवानुप्रिये ! मैंने उस चोर को
शनादि धर्म के लिये नहीं दिया है, तप के लिये नहीं दिया है, लोकों को बताने को नहीं दिया है, नायक क संबंध से नहीं दिया है, संघाडे का जानकर नहीं दिया है, सहायक जानकर नहीं दिया है, मित्र जानकर नहीं दिया; परंतु शरीर का उच्चार प्रस्रवणादि कारन टालने को दिया है क्यों कि यह कार्य वहां से चले विना नहीं होता था. धन्ना सार्थवाह का इतना कहने पर वह भद्रा भार्या हृष्ट तुष्ट
० प्रश-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्यालाप्रमादजी .
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