________________
wwwwwwwwwwwor
भाइल्नेतिया सावियणं धन्नेसात्यवाई एजमाणे पासइता पायवडियाए खेमं कुसलं : पुछंति ॥ जावियसेतत्थ अभितरिया. परिसा भवंति. तंजहा-मायाइवा पियाइवा भायातिवा भगिणीतिवा सावियणं धणसत्थवाहं एन्जमाणं पासइ२ त्ता आसणातो अन्भुट्टे. कंठाकंठियं अवदासियं वाहप्पमक्खिणं करेइ ॥ ४७ ॥ ततेणं से धणे सत्थवाहे जेणेव भद्दा भारिया तेणेव उवागच्छइ, ततेणं सा भद्दा धणं सत्यवाहं एजमाणं पासति, पामित्ता ना आढति नो परियाणेइ अणाढायमाणी अपरिजाणमाणी तुसिणीया परंमुही सचिट्ठइ ॥४८॥ ततेण से धण्णे सत्थवाहे भदं भारियं एवं चयासी किंणं तुमं देवाणुप्पिया ! न तुहिवा, न हरिसोवा,ना नंदोवा जं मएसएणं अत्थसावगैरह धन्ना सार्थ राह को आते देखकर उन के पांव में पडे और उनकी कुशल क्षेम पूछी. वहां से अंदर के माम में उन की माता, पिता, भाइ, भगिनी, वमैर है सब धन्नासार्थवाह को कंठ से कंठ मिलाकर मिले।
और आलिंगनकर हर्षाश्रु वर्षाये ॥४७॥ वहां से वह धनामार्यवाह भद्र भार्याकी पास गया, परंतु उसने ॐन का आदर सत्कार किया नहीं चाचाप परांगमुख होकर बैठी ॥४८॥ तब धन्ना साशन 1 दाभाई को पूछा कि अहो देवानुप्रिये ! तू किस लिये संतुष्ट नहीं है, मेरे को हर्ष, आनंद न है ?
पष्ट अज्ञाताधकथा का प्रथम श्रुतस्कन्ध 16th
wwwwwwww
"ne पन्ना सार्थवाह का दूसरा अध्ययन १३
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org