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सत्र
का अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
अलंकारिय कम्मं कारवेइ,२त्ता जेणेव पुक्खरिणी तेणव उवागच्छद २ ता अहधोय मष्टियं :: गेण्हइ २ त्ता पुक्खरिणी ओगाहइ पुक्खरिणी ओगाहित्ता जल मज्जगं करेइ हाये कयबलिकम्मे जाव रायगिहं अणुप्पवेसेइ,रायगिहस्त णयरस्स नगरं मझं मझेणं जेणेव सएगिहे तेणेव पाहारस्थ गमणाए॥४६॥ततेणं धणं सत्थवाहं एजमाणं पासइ पासित्ता रायगिहे णयरे वहा नगरणिगम सेट्ठि सत्थवाहापभितयो आढ़ति परिजाणंति सकारेंति समाणेति अब्भुटुंति सरीरं कुसलं पुछति।ततेणं सेधण्णे जेणेव सएगिहे तेणेव उवागच्छइ
२त्ता जावियसे तत्थवाहिरिया परिसा भवंति तंजहा-दासातिवा पेसणातिवा भाइंगातिवा मे निकलकर अलंकार की सभा में आया और अलंकारिक कर्म करवाया. वहां से पुष्करणी पावडी की पास आया. वहां मृनिका लेकर शरीर को लगाई. पोछे वावटी में जाकर मान किया यावत् राजगृह नगर में से होते हुवे अपने घर आने को निकला ॥ ४६ ॥धमा सार्थवाह को आते देख कर बहुत गांव के शेठ सार्थवाह प्रमुखने इन का सत्कार किया, इन को सन्मान दिया और शरीर को शल क्षेम पुछी. वहां से अपने गृह आया वहाँ बाहिर में दास, प्रेषण, मृत्यु, भाइंग (पचपनसे रखेहुचे)
१ यस्यां नापितादिभिः शरीरसत्कारो विधीयते. जहां नापित शरीर स्वच्छ करे वह स्थान. २ नखमंहनादि.
०प्रकाशक-राजावादूर लाला मुखदवसहायजी व्यायामसाहबी.
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