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________________ - ..488 48 अष्टांग ज्ञाताधर्मकथा का प्रथम श्रनस्कन्ध पिंडयं गहाय चारगसलाओ पडिक्खमति रत्ना रायगिहं नगरं मझमझेणं जेणेव सएगिहे. जेणेव भद्दा भारिया तणेव उवागच्छइ २त्ता भई एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिये ! धण्णे सत्थशहे तव पुत्तघायगस्स जाव पच्चामित्तस्स ताओ विपुलाओ असणं पाणं खाइमं साइमं संविभागं करेइ ॥ ४४ ॥ ततेणं सा भद्दासत्थवाही पंथयस्स दास चंड यस्म अंतिए एयमटुं सोचा आसुरत्ता रुट्टा जाव मिसिमिसेमाणी धण्णस्त सत्थवाहरस पउसमा वजइ ॥ ४५ ॥ ततेणं से धण्णेसत्यवाहे अन्नया कयाइ मित्तनाइ णियग सयण सबंधि परियणेणं सएणय अत्यसारेणं रायकज्जातो अप्पणं मोयावेइ २ त्ता चारगसालातो पडिणिक्खमइ २ त्ता जेणेव अलंकारियसभा तेणेव उवागच्छइ २ ता । लकर रानगृह नगर की बीच में से होते हुवे अपने गृह भद्रा भार्या की पास आया. और उसे ऐमा बोला अहो देव नुप्रिय ! धन्ना सार्थवाह अपने पुत्र के घातक यावत् दुश्मन को अन्न में से विभाग करके देते हैं ॥ ४४ ॥ पंथक नामक दास की पास से ऐसी बात सुनकर भद्रा सार्थवाहीनी आसुरक्त, रुष्ट यावत् मितापिपायमान हुई. और धन्ना सार्थवाह पर द्वेष करने लगी ॥ ४५ ॥ थोडे दिन पीछे धन्ना * सार्थताह को उन के स्वजन संबंधी व परिजनोंने राजा को दंड देकर मुक्त कराया. फीर उस चरक शालामें धन्नासार्थवाह का दूसरा अध्ययन 428 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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