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सत्र
११ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलख ऋषिजी.
अहंणं तुभं ताओ विपुलाओ असणं पाणं खाइमं साइमं संविभागं करिस्सामि . ॥ ३९ ॥ ततेणं से विजए धण्णस्स सत्थवाहस्स एयमढें पडिसुणेइ २ ॥ ततेणं से धण्णे विजएणं सद्धिं एगते अवक्कमइ उच्चार पासवणं परिठयेइ आयंतं चोक्खे परमसुइभूए तमेवट्ठाणं उवसंक मेत्ताणं विहरई ॥ ४० ॥ तएणं सा भद्दा कल्लं जाव जलंते विलं असणं पाणं खाइमं साइमं जाव परिवसेइ ॥४१॥ ततणं से धण्णे सत्यवाहे विजयस्स तक्करस्स ततो विपुलतो असणं पाणं खाइम साइमं संविभागं करेइ
॥४२॥ततेणं से धण्णे सत्थवाहे पंथयं दास चेङविसज्जेइ ॥४३॥ ततेणं से पंथए भोयणं के तुझ अशादिका विभाग दूंगा॥३९॥विजय चोरने धन्ना सार्थ राह शेठ की बात मान्य की और उनकी साथ
जाकर उच्चार प्रस्रवण किय. फोर जलादि से शूचिभूत हुए और उनी स्थान आकर रहने ग ॥४०॥ दसरे दिन भद्रा भार्याने पहिले दिन जैले अशनादि बनाकर एक करांडिये में रखकर उसे बा कर एक जल का पात्र मरकर पंथक दास को दिया यावत् धना सार्थवाह को परूमा ॥४१॥ उस समय धन्ना सार्थवाहने विजय चोर को उस अशनादि में से विभाग कर दिया ॥ ४२ ॥ तत्पश्चात् धन्ना सार्थ. पाइने पंथक को विसर्जित किया !! ४३ ॥ तत्पश्चात् वह पंथक भोजन के पात्रों लेकर केदखानेमें से निक
• प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेनमहायजा ज्नालाप्रसदाजी
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