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________________ । श्री अमोलक ऋषिजी सालिंगणवटिए उभय ओविन्बोयणे, दुहओ वण्णए मझेणय गंभीरे गंगपुलिणे वालय उद्दाल सालिसए उयचिय, खोमदुगुल पट्ट पडिच्छयणा, अथरय मलयण वतय कुसुत्थलिंब सीह के प्तरपव्यथिए, सुविरइ यस्यताणंरत्तं सुय संबुए सुरम्मे आईण गरुयबकूरणवणीय तुल्लफासे । पुव्वरत्तावरत्तकाल समयंसि सुत्तजागराओहिरमाणी HE} . ओहीरमाणी एगंमहं सतुस्सेहिं रययकूड सणिहं णहयलंप्ति सोमं सोमागारं लीलायं तं जं भायं तं मुहमंतिगयं पासित्ताणं पडिबुद्धा ॥ १७ ॥ तएणं साधारणी अयमेया भावार्थ के योग्य, दोनों वाजु तकीयेवाली, दोनों तरफ ऊंची, वीचमें गंभीर, गंगा नदी की बालू-रेती समान मृदु, कपास मे बनी हुई रदकम्बल वस्त्र विशेष से ढकी हुइ, कमल आदि पुष्प की वास नालिकायुक्त, बकरे के बाल सिंहकी के समय आभरण विशेषसे आच्छादितकी हुइ, रजवाण आच्छादन विशेष रक्त वसमे वेष्टित मशकगृह नामक वस्त्र विशेष आवृत्त सुरम्प कौमल जैना-मृगचर्म, कपास व बूर वनस्पति समान शय्याम धारणी राणी सोतीहुई थी. उसमय पूर्व [आधी रात्रीबीतेवाद कुच्छ सूती कुच्छ जगतीहुई आखोंकी मेषोन्मेष करती टपकातीहुई धारणी राणीने सानहाथका लम्बा चांदिके पर्वतसमान श्वेत सौम्य सौस्याकारवाला क्रीडा करता हुर.एकहाथी आकाशमें से उतकर अपने मुखमें प्रवेश करता हुवा देखा, देखकर नागृहतहुई।।१७।। १ किसी स्थान सिंह स्वप्न का भी पाठ है. प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेव सहायजी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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