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________________ भावार्थ 28+ षष्टमांग ज्ञाताधर्मकथा का प्रथम श्रुतस्कन्ध 4 कुटिमतले; पउमलंया फुल्लबालि वरघुप्फ आइउल्लोयचिल्लियवले चंदणवरकणग कलस सुणिम्मिय पडिपुंजिय सरस पउम सोहंत दारभाए, पयरग्गलंबंत मणिमत्तदाम सुविरइय दारसोहे, सुगंधवर कुसुम मउय पम्हलसइ, णोवयार मणिहियय णिव्वुइयारे, कप्पुर लवग मलय चदण काल गुरु पवर कुंदरुक्क लुरुक्कधूवडाझंतसुरभि मघमत गध धूयाभिरामे, सुगंधवरगंधिए गंधवट्टीसुए, मणिकिरण पणासियंधयारे, किं बहुणा जइगुणीहं सुरवरबिमाण विलंब वरघरए ॥ संसि सारिसमंसि सयणिजसि लीलायुक्त प्रत्यभाव बतानेवाले विचित्र चित्र किये थे. अनेक प्रकारके पांचों वर्ण के मणि रत्नों से भूमि का तला जडा हुवा था. अंगन विचित्र रंगले चित्रित किया था, पद्म कमल रक्त वेल, लतावेल, पुष्पवेल, नागर वेल, जाइ आदिवेलों और भी अन्य प्रधान अच्छे पुष्पोंकी जासिसे उपरका भाग चित्र सरित था, मंगलिक प्रधान सुवर्णमयचंदन कलश मनोज्ञ स्थानमें रखेथे, पद्मकमलसे सुशोभितद्वार भाग था, लटकती हुई मोतियों की मालासे द्वारकी शोभा विरचित्र की हुई थी, सुगंधित प्रधान कुसुमम समान मुद्र सोनेका उपचारसे मन को स्वास्थ करनेवाला था, कपूर, लोंग, मलयाचल चंदन, कृष्णागर, प्रधान चीड(गंध विशेष और सेलहारस धूपयोग ऐमी धूपकी गंधसे मघमघायमान होकर मनोहर बना हुवा था, सुगंधि में श्रेष्ट गंधवाला, सुगंधि गुटिका मामानथा. उस भवन में मणि के किरणों से नष्ट हुवा था अंधकार किंबहुना द्युतिकांति आदि गुणों से देवताओं के विमान को भी पुराभव करे ऐसा प्रसाद था. ऐमा प्रसाद में पुण्यवंतों का +8+ उत्तिम ( मेषकुमार ) का प्रथम अध्ययन 428 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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