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________________ सूत्र 4 अनुवादक- बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी तस्सर्ण वाहणंच, पुरंच, अंतउरंच, सयमेव समुपैक्खमाणे २ विहरई ॥ १५ ॥ सेणियस्स रण्णणे धारणीणामं देवी होत्था, जाव सेणियस्स रण्णो इट्टा जाव विहरइ ॥ १६॥तएणं साधारणीदेवी अण्गयाई तंसि तारिसगंति छकटुलट्ठमट्ठ संद्विय खंभुग्गय पवरवर सालभंजिय उज्जल मणि कंणगरथण थुभियविडंकजालडं, चंदणिजूयं कंतरकयाणि चंदसालिया विभत्ति कलिए सरसच्छ धाउधवल वण्णरइए, वाहिर ओदूमिय घट्टम, अमरओ पसत्थ सुविलियि चित्तकम्मे णाणाविह पंचवष्ण मणिरयण भावार्थ = {[ भंडार ] कोष्टागार, व सैन्य, वाइन, पुर-नगर व अंतःपुर की संभाल रखता हुवा विचरता था ॥ १६॥ उत श्रेणिक राजाको धारणी देवी थी वह श्रेणिक राजाको इष्ट यावत् सुख भोगवति विचरती थी॥१६॥ पुण्यवन्तको योग्य षटू-काष्टमय गृह का द्वावाला, लष्ट, पुष्ट घारा मटारा सुस्थित संभवाला, प्रत्येक स्तंभ सुंदर पूत{लियाँवाला, प्रधान साल मंजिका पूतलीवाला. उज्जल देदीप्यमान चंद्र कान्तादि मणि से जडित करकेतनादि रनों का शिखर व वरंडियोंवाला, अर्ध चंद्राकार गवाक्षवाला, प्रासाद था. जिस में जाने के लिये पक्ति { स्थापन किये थे, गृहपर गृह उस पर शाला और उस में अलग २ विभाग किये हुवे थे, अच्छे पाषाणमय धवल पाण्डुरंग से चित्रित थे. अच्छी धातुओं से आलंकृत किये थे. गृह के बाहर का विभाग धवल उज्वल था, घटार मठार घसकर अच्छा बनाया था. उस भवन के मध्य में अपने स्वभाव की शुद्धिवाले अच्छे Jain Education International For Personal & Private Use Only # प्रकाशक- राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी-# C (www.jainelibrary.org
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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