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________________ 498 पाङ्ग ज्ञाताधर्मकथा का प्रथम श्रुतसन्ध 41 अकजमित्तिकटु, देवदिन्नं दारगं भग्गकूवाउ उत्तारैति २ ता धण्णस्स सत्थवाहस्स * हत्थेणं दलयंति ॥ २७ ॥ ततेणं ते जगरगुत्तिया विजयस्स तक्करस्स पयमग्ग णुगच्छमाणा जेणेव मालुयाकग्छए तेणेव उवागच्छंति २ ता मालुया कच्छयं अणुप्पविसंति २विजयं तकरंससक्खं, सहोढं सहगेवेजं जीवगाहं गेण्हति २ त्ता अट्ठि मुट्टि जाणु कोप्पर पहार संभग्ग महियगत्तं करेंति २ अउडा बंधणं करेंति २ देवदिन्नस्स दारगस्स आभरणं गेण्हति २ विजयस्स तक्कररस गीवाए बंधति २ त्ता मालुया कच्छयाओं पडिणिक्खमंतिरत्ता जेणेव रायगिहे नगरे तेणेव उवागच्छति २त्ता निर्जीव देखकर हा ! हा !! अहो !!! यह अकार्य हुवा. फीर उस को को में से निकालकर धम सार्थवाह को दिया ॥ २७ ॥ फीर वह नगर रक्षपाल उस चोर के पांव के अनुसार से जाते मालवा कच्छ की पास गये और उस में प्रवेश कर विजय चोर को सब की साक्षी से मुख और पीठ को गावाडी के बंधन से बांधा. जीवित चोर को पकड कर हड्डी, मष्टी, जान, हाथ की कूणियाँ वरह में चार ॐ को बहुत प्रहार करके खोखरा किया. पीछे हाथ रखवाकर बंधन से बांध दिया. और देवदिन कुमार के काजो आमरण उसकी पास थे उसे ले लिया. फीर उसे गरदन से पकड कर बाहिर निकाला और राजगृह 48 घना सार्थवाह का दूसरा अध्ययन + For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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