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4. अनुकादक-बालब्रह्मनगरी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी -
पायवडिए तं ममनिबेएइ ॥ तं इच्छामिणं देवाणुपिया ! देवदिन्नस्सं दारगरस सयता समंता मग्गणगवेसणं करेह ॥ २६ ॥ ततेणं ते नगरगुत्तेया धणेणं सत्यवाहेणं एवं वुत्तासमाणा सन्नडऋद्धवम्मियकवया उप्पलियसरासणपट्टिया जाव गहिया उहपहरणा धणेणं सत्थवाहेणं सद्धिं रायगिहम्म नगरस्स बहूणि अगमगाणिय जाव पवासुय मग्गणगवेसणं करेमाणा रायगिहाओ नगराओ पडिणिक्खमंति २त्ता जेणेव जिष्णुजाणे जेणेव भग्गकूबए तेणेव उवागच्छइ २ त्ता
देवदिन्नस्स दारगरस सरीरं णिप्पाणं णिच्चेटुं जीव विप्पजढं पासंति २ हाहा अहो पंथक दाम को दिया यावत् उसने मेरे पांव में पडकर सब बात मुझे कही. अब अहो देवालुमिप! मैं देवदिन कुमार की गवेषणा कराना चाहता हूं.॥ २६ ॥ उस कोटवालने धन्ना सार्थवाह की पास से ऐसा सुनकर चर्म के बंध बांध, कवच (बख्तर) धारण किया, धनुष्य की पीठको खींची, मस्तक में मुगुटपट्ट पहिन लिया और हाथ में हथियार धारण किये. फार धन्ना सार्थवाह की साथ राजगृह नगर के बहुत निक लने के मार्ग यावत् पानी के स्थानों में गवेषणा करते हुवे राजगृही नगरी के.काहिर निकले. वहाँ से जहाँ जीर्ण उद्यान व तूटा हुवा कूबा था वहां आये. वहां देवदिन कुमार का शरीर प्राण रहित निश्चेष्ट ।
प्रकाशक-राजाबहादुर.लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी .
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