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________________ पष्टांत हाताधर्मकथा का प्रथम-शुतस्कन्ध 4 " से धण्णेसत्यवाहे तओमुहुर्सतरस्स आसत्थे पछागययाणे देवदिनस्स पारगस्स। सवओ समंता मग्गणगवेसणं करेइ २त्ता देवदिनस्स दारयस्स करथइ सुइवा खुइवा. पउत्तिवा अलभमाणे जेणेव सएगिहे तेणेव उवामछइ रत्ता महत्थपाहुडं गेण्हहरना जेणेव नगरगुत्तिया तेणेव उवागच्छइ उवाग छहत्ता तं महत्थं पाहुडं उवणेति २ त्ता एवं क्यासी-एवं खलु देवाणुप्पिया ! मम पुत्ते भहाए भारियाए अत्तए देवदिने मामं दारए इढे जाव उंथर पुप्फपिव दुलहे सवणयाए किमगपुण पासणयाए । ततेणं सा भद्दा देवदिनं व्हायं सव्वालंकार विभूसियं, पंथगस्स हत्थे दलयति आव दो घडी पीछे आश्वासन पाता हुवा स्वस्थ हुवा और देवदिन पालक की गवेषना करने लगा. जब | करते हुए भी किसी प्रकार से पचा मला नहीं वह अपने ग्रह आया. वहाँ बहु मूल्य भेट लेकर नगर रक्षक कोतवाल ] की पास गया. उन की पास वह भेट रखकर ऐसा बोला अहो देवानुप्रिय ! मेरी भद्रा मार्या से उस्मान हुवा मेरा पालक देवादिन कुमार इष्ट यावत् उबर पुष्प समान सुनेन को ही दुर्लभ था, वो देखने का कहना ही कमा ऐमा था. भद्रा सार्थवाहीने उनको नान कराके यावत् सर्व अलंकार से विभूषित करके। _48+ धना सार्थमाव का दूसरा मध्ययन MP Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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