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+ अनुवादक-पालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋपिजी -
रायगिह नंयर अणुप्पविसंति २त्ता रायमिहे नयरे सिंघाडग तिग चउक्क चच्चर रहा पहपहेतु कसप्पहारेय, लयाप्पहारेय छिवाप्पहारेय, निवाएमाणाच्छारंवा धूलियंच कयवरंच उवरिं पक्खिवमाणा महता २ सद्देणं उग्घोसेमाणा २ एवं वदति-एसणं देवाणुप्पिया ! विजए णामं तकरे जाव गिरविव-आमिसभक्खी बालधाएय बालमारए, तं नो खलु देवाणुप्पिया ! एयरस केति रायावा रायमचेवा अवरज्झति, णण्णत्थ अप्पणो सयाई कम्माइं अवरज्झति तिकटु जेणामेव चारगसाला तेणामेव
उबागच्छति उक्गच्छित्ता हडिबंधणं करेति, भत्तमाण निरोहं करेति २ ता संज्झंनगर में गये. वहां प्रवेश करते अंगाटक, त्रिक, चौक, चच्चर, व महापंथ में चाबुक का प्रहार, लत्ता का प्रहार, मोटा के प्रहार से मारते हुवे राख, धूलि, व कचरा उस पर फेंकते हुवे बडे जोर २ से लोगों बोलने लगे कि अहो देवानुप्रिय ! यह विजय चोर मोस खानेवाला, पालक का घातक, पालक को मारने वाला है. इस से कोई राजा व राजकर्मचारी इस को दण्ड देने में अनर्थ नहीं करते हैं. उसे अपने किये। हने कर्म के फल मात हवे हैं, सिवा अन्य किसी का दोष नहीं हैं. इस तरह कहते हुवे रस चोरों को बांधन की चरकशाला (केदखाना ) में लायें, वहां उसे हड्डी [ खोडे ] से बंधा, खाने को देने का निरोप :
• प्रकायाक राजापहार लाला मुखदेवसझयजी ज्वालापसाटला.
भर्थ
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