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________________ + 4 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक प्राषिजी पच्चुण्णमइ २ लोमहत्वगं परामुसइ २ णागपडिमाओय. जाव समणपडिमाओय लोमहत्थेणं पमजद दगधारए अब्भुक्खेइ २ पम्हलमुकुमालाए गंधकालाई गायाई लुहेइ २ महरिहं वत्थारुहणंच मल्लारुहणंच गंधारुहणंच, पुष्फारुहणंच,चुण्णारुहणंच वण्णारुहणंच करेइ जावधूवं डहतिरजाणुपायवडिया पंजलिउडा एवं वयासी जइणं अहं दारगंवा दारियंवा पयायामि तोणं अहं जायं च जाव अणुवड्ढामि तिकद्द उवाइयं करेइ २ जेणेव पोक्खरणी तेणेव उवागम्छइ, तेणेव उवागच्छइत्ता में विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं आसाएमाणी जाब विहरइ ॥ जिमिय जाव सूइब्भूया, जेणेव सएया, पख जैसे सुकोमल कपाय रंगवाले वस्त्रों से उन प्रतिमाभों को स्वच्छ की, पहमूल्य वस्त्र अलंकार पहिनाये. गंध, चूया चंदनादि लगाये, पुष्प चढाये, वगैरह यथास्थान सब शोभित किया. यावत् अंगार में मुगन्धी धूप डालकर देवालय पधमयायमान कर दिया. फर हाथ जोडकर ऐमा बोली याद मुझं पुष अथवा पुत्री हेगा तो मैं बहुमूल्य पाली पूजा करूंगी, पर्वादि दिनों में दान करूंगी, द्रव्योपार्ज की विभाग करूंगी, और आपके भंडार में द्रव्य की वृद्धि करूंगी. इस तरह याचना करके जहां पुष्करणी वावडी थी वहां आई और विपुल अशन पानादि आसादती हुई यावत् विचरने लगी. जीमकर यावत् प्रकाशक-राजावट दुलाला सुखदेवसहायजी ज्यालाप्रमादजी . Jain Education Interational For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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