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सूत्र
अर्थ
20 षष्टाङ्ग ज्ञाताधर्मकथा का प्रथम स्कन्ध
गिहे ते उत्रागच्छ ॥ १२ ॥ अदुतरंचणं भद्द मत्थवाही चउद्दट्ठ मुद्दिट्ठ पुण्णमासिणीसुविपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं उक्खडेइ २ ता बहवे नागाजय जाव वेसमणाणय उवायमाणी नमसमाणी जाव एवं चणं विहरइ ॥ १३ ॥ तसा भद्दा संस्थवाही अन्नया कयाई केणं कालंतरेणं आपण सत्ता जायाया वि होत्था ॥ १४ ॥ तरणं तीसे भदासत्यवाहीए दोसु मासेमु वीसिकतेमु, तइएमा से ब्रह्माणे इमेयारूत्रे दोहले पाउन्भूते तं धन्नाउणं ताओ अम्मयाओ जाव कयलक्खजातो ताओ अम्मयाओ जाउणं विपुलं असणपाण खाइम साइमेसु बहुयं पुप्फगंध शुचिभूरा (पवित्र) मुखनक्षालनादि से हुई और वहां से अपने घर आई || १२ || अब भद्रा सार्थवाही चतुर्दशी, अष्टमी, पूर्णिया, अमावास्या. इन चारों तिथियों में विपुल अशनादि बनाकर बहुत नाग देव शवत् वैश्रमण देवों को भोग चढाकर पुत्र या पुत्री की याचना करने लगी ॥ १३ ॥ बहुत कालांतर से एकदा प्रस्तावे भद्रा सार्थवाही गर्भवती हुई ॥ १४ ॥ जब दो मास व्यतीत हुए और तीसरा मास बैठा सब भद्रा भार्या का ऐसा दोहद हुवा कि जो माता विपुल अशन, पान, खादिम, स्वादिम, अच्छे सुगंधित बहुत पुष्प, गंध, माल्य व अलंकार लेकर मित्र, निजक, ज्ञाति, स्वजन, संबंधी वगैरह की स्त्रियों साथ परवरी हुई- राजगृही
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* धन्नास वाह का दूसरा अध्ययन 44
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