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________________ १७१ 48+ षष्टाङ्ग वाताधर्मकथा का प्रथम श्रुतस्कंध 418+ गिण्हइत्ता सयाओ गिहाओ णिगच्छइ २ ता रायागहं नगरं मंज्झमझेणं निग्गच्छइ निग्गग्छइत्ता जेणेव पोक्खरणी तणेव उवागच्छइ २ त्ता पोक्खरणीए तीरे मुबहुं पुप्फ जाव मल्लालंकार ठवेइ २ त्ता पेक्खरणिं उग्गाहइरत्ता जलमजणं करेइ जलकीडं करति, ण्हाया कयवलिकम्मा उल्लयपडसागा. जाई तत्थ उप्पलाई जाव सहस्स पचाई ताई गिण्डइत्ता पोक्खरणीउ पच्चोहइ २ ता तं सुबहुं पुष्फ वस्थगंधमलं गेण्हा २ ता जेणामेव णागघरएय जाव वेसमणघरएय तेणेव उवाग छइत्ता, सत्षणं णागपडिमाणय जाव वेसमण पडिमाणय आलाए पणाम करेइ ईसिं राजगृही नगरी के बीच में होते हुवे पुष्करणी बारडी थी वहां आई. उस वावडी के किनारे पर पुष्पो वगैरह सब रखे. फीर उम में जाकर जल मज्जन किया, जलक्रीडा की, स्नान किया, कोगले किये. फीर उस पानी से भींजी हुई साडी सहित वहां जो उत्पल यावत् सहस्र पत्रवाले कमलों थे उसे ग्रहण कर उस में से बाहिर आई. और वस्त्र, गंध, माल्यालंकारादि बाहिर थे उसे लेकर नाग देवालय यावत् वैश्रपण देवालय में गई. बहुत नीचा नमकर नमस्कार किया. फीर मोरपीछ की पूंजनी ग्रहण की, और नाग प्रतिमा यावत् वैश्रमण की प्रतिमा को उस पूजन से प्रपार्जना की. पानी की धारा से प्रक्षालन 18+ पत्रा मार्यवाह का दूसरा अध्ययन 4k | Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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