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41 अनुवादक-पलबमाचारमाने श्री अयोकऋषिजी
मंजुलप्पभागिए, लणं अहं अधन्ना अपुन्ना अकयलक्खणाः एत्तो एगमविणपत्ता ॥ तं इच्छामिणं देवाणुप्पिया! तुम्भेहि अब्भणुनाया समाणी विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं जाव अणुवद्वेमि, उवाइयं करित्तए ॥१०॥ ततेणं धण्णेसत्थबाहे भदं भारियं एवं वयासी-ममंपियणं स्खलु देवाणुप्पियाए एसचेव मणोरहे कहण्णं तुमं. दारगंवा दारियंवा पयाएज्जासि, दाए सत्थवाहीए एयमद्रं अणुजाण ॥ ११॥ ततेणं सा भद्दासत्थवाहिणी धण्णेणं सत्थवाहेणं अब्भणुन्नायासमाणी हट्टतुट्ठा जाव हियया,
विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेति सुबहुपुप्फगंधमलालंकारं गेण्डा रहती है उस माता को धन्य है. मैं अधन्या अपुण्या हुं. मेरे में शुभ लक्षण नहीं है. क्यों की मुझे एक भी पुत्र की प्राप्ति नहीं है. इस से अहो देवानुप्रिय ! आप की अनुशा होवे तो मैं विपुल अशन, पान, खादिम, स्वादिम पनाकर यावन् वांछित वस्तु की याचना करने को चाहती हूं. ॥१०॥ तब यह धन्नासार्थवाह भद्रा भार्या को ऐमा बोले कि मेरे मन में भी ऐसा मनोरथ था कि कर
तुझे पुत्र या पुत्री होवे. भद्राने धन्नार्थवाह की इस बात को सम्यक् प्रकार से जानी * ॥ २१ ॥ धनासार्थवाह की अनुज्ञा होने मे भद्रा बहुत हृष्ट तुष्ट हुई, विपुल अश्न, पान, खादिम,
स्वादिम, बनाये, और गंधित बहुत पुष्प, गंध, माला, अलंकार वगैरह लिये. फीर अपने गृह से नीकलकर
राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसाद नी..
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