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14धणेनाम सत्यवाहे अड्डे दित्ते जाव विउले भत्तपाणे॥५॥ तस्सणं धण्णस्स सत्थवाहस्स
भदानाम भरिया होत्था सुकुमाल पाणि पाया अहीण पपुण्णपचिंदियसरीर लक्षण वंजणगुणोकोया, माणापमाण पडि पुण्ा सुजात सव्वग सुदरंगी, सलि सोमागारं यंत पिय इसणं, सूरुवा, करयल परिमिय तिवलिय मञ्झा कुंडलुल्लिहियगंडलेहा,कोमुइय -- रयाणपर पुडिपुण्णा सोमवदणा लिंगारागारच रुवेमा जाव पडिरूवा वंझा अवियाउरी.
आणुकाप्पर नायायावि होत्था।॥६॥तरसणं धण्णस तत्थवाहस्स पंथए नामंदास चेडे होत्था - - अर्थदक्षिात यावत् विपुल अक्त पान वाला था ॥॥ ५ ॥ उस धन नार्थ को यदा नामकी भी थी. उस में हस्त पर पक्खन समान को पल थे. किसी प्रकार की हीनांगना नहीं थी. पांचों इन्द्रियों से
शरीर के लक्षण व्यंजन युक्त, मान उन्मान व प्रमाण में रायर, सांग मुदरी, शशा- समान सौम्य कार वाली, कांता, पिय दर्शना थी, मुधि से परिमित प्राण पाली) त्रिनली उन की कटि भाग में पा. कान में कुंडल धारन गिरा थे, पूर्णिमा की रात्रि के प्रीपूर्ण चंद्र ममान सौम्य वंदन वाली थी, और शहर के ग्रहसमान पनाहर पेशवाली यावत् प्रतिरूप थी, और भी वह खी बंध्या | अजन स्वामी श्री. शासकी पालना उसरे नहीं भर पाता थी ॥६॥ उस धनामार्थ
रामपा माल थेवं शरोरांश भूतानि तस्यास्तती स्पृशंति ना पत्य अर्थात् दोनों घुटने व हाथ की कोना ही जिस माता, के 4 पर्श करे परंतु त्र उतान्न होकर स्पर्श करे नहीं.
धन्ना सार्थवाह का दूसरा अध्ययन
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