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करोड १८२॥तएणं से मेहे अणगारे समणेणं भगवया महावीरेणं अम्भाणुणाए समाणे हट्ट तुढे जाव हियए उट्ठाए उठेइ २ त्ता, समणं भगवं महावीरं तिक्खनो भायाहिणं पयाहिणं करेइ २ चा बंदइ णमंसइ २ त्ता सयमेव पंचमहब्बयाई भारहइ १ ता गोयमाइ समणे निग्मंथीओय खामेइ, तह रूकेहि कडाईए धेहि सर्डि विपुलं पत्रयं सणिणं २ दुरुदइ २ ता सयमेव मेहघणसगिगासं पुढविसिलापट्टयं पडिलेहेइ २ ता उच्चारपासवण भूमि पडिलेहेइ २ ता दब्भ
संघारगं संथरइ दब्भ संथार दुरुहइ पुरत्यानिमुहे संपलियंकणिसण्णे करयल देवानाय ! जैमें मुख होये वैसा करो विलम्ब मत करो ॥ १८२ ॥ उस समय मेघ अनगार भगवान की पास से ऐसी आज्ञा मीळनेमे इष्ट तुष्ट हुपे यावत् इश्य विकमाय मान हुा अपने स्थन से उठकर भगवान् महावीर सापी कोनीन अ.वर्त व प्रदक्षिणा करके स्वयमेव पांच महवा की अरग के गौतम दि श्रमण निन्ध व प्रैन्थ नीभाको खाकार तयारूप कडाइ स्थरी माय विपुल पर्वत पर शत: २ चडकर स्ममेव सघा मेव नमान पृथी शिल, पE की माते लेखा कर, उच्चार पत्रण भूमिकी पविलेखना करदर्भ संथारा विछाकर उसपर पूर्वाभि ख पकासन से बेठे करतल जोड कर शिर
रत्सित मेधकुमार का प्रथम अध्ययन
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