SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 160
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ परिग्गहियं सिरसावतं मत्थए अंजलि कटु एवं वयासी--णमोरधुर्ण अरिहताणं भगवंताणं जाव संपत्ताणं णमोत्थुणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जाव संपाविओ कामरल मम धम्मायरियस्स वदामिण मग तत्थगयंइहगए पाप्तउमे भगवं तत्थगए इहगयं तिकटु वंदइ णमंसइ २ ता एवं क्यासी-पुस्विपिणं समणरस भगवओ महावीरस्त अंतिए सवपा णाइवाए पञ्चक्खइ मुसावाए अदिण्णदाणे मेहणे परिग्गहे कोहे माणे माया लोभे पंजे दोसे कलहे अब्भक्खणे पेसुणे परपरिवाए अरह रइ मायामोसे मिच्छादसणसल्ले पच्चक्खए इयाणिपिणं अहं तस्मेव अंतिए से आवर्त देकर मस्तक पर अंजकिरपाबोले अरिहंत भगवंत को यावत् मोक्षको प्राप्तमिद्ध भगवंत को नमकार हावे श्रमण भगवंत महावीर किजो मोक्ष प्राप्त करने के कापी हैं उनको भी नमस्कार होवे मेरे धर्माचर्य को में वंदना करता हुं अहो भगवन् ( वहां बैठे हुन अप मुझे देख सकते हो यों कहकर बंदना नमस्कार कर ऐसा वाले कि मेने पहले भी अमण भगवान महावीर स्वामी के पास सब प्रणाति, पात, मृपावाद, अदत्तादान, मैथुन, परिग्रह, क्रोध, मान, माया, लोभ, राग, द्वेष, कलह अभ्याख्यान 17 पैशुन्य, परपरिवाद, अरति रति, म या मृपा, व मिथ्या दर्शन शल्य का प्रत्याख्यान किया है. अत्र में अनवादक-पालब्रह्मचारी मुनि श्री बमोस ऋपिजी + .पाक राभावमदुर लामा मुखवसहायजी चाला प्रसादजी. www.jainelibrary.org For Personal & Private Use Only Jain Education International
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy