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________________ नगदक-वासनापरी मुनि श्री मोडीजी पाओषगयस्त कालं अ समागम विहरित्तए, एवं संपेहेइ २ क प उप्पभाए रयणीए जाव जलंते जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उबागच्छइ २ त्ता, तिक्खुचो मायाहिणं पपाहिणं करेइ वंदा गममइ २ ता चासणे णाइदूरे पुस्सुसमाणे अभिमूहे विण एणं पंजलिउडे पाजुवासइ ॥ १८१ ॥ मेहेति ! समण भगव महावीरे मेहं अगमार एवं बयासी-से पूर्ण तवमहा ! राओ पुत्र रत्तावत्त काल समयंसि धम्म जागरियं जागरमाणस्त अयमेयारूवे अज्झत्थए जाव समुप्प जिस्था-एवं खल अहं इमेणं उरालेणं जार जैगव अह तगव हगमागए, सं मेहा ! अटुं समठ्ठ ? हना अस्थि ॥ अहामुहं देवाणुपिया ! मा पडिपंधं गमनकारार कल कोही पच्छिता हुवा विचलं, ऐमा विचार कर प्रभात होते पण भगवान पहार स्व मो की पास भाकर तीन वरुन हाय जोड ३ प्रमोक्षगा देकर बहुत पाम नहीं बने ही बहुत इस तरह मेरा परता दुगन की सन्मुख रिनय पूर्णक स्तद्वार जंड कर पापना करने लगा १८१॥श्रमण भगान् महावीर स्थानीने मब अनगार का देख कर ऐसा कहा कि अहो अप ! की पकी रात्रि में धर्म जागरणा करते हुए एमा अध्याय हुवा किस उदार तपस्यासे वापर मेरी पास भाया है. क्या यह सत्य है अर्थ ! अहो भगान् ! या अर्थ सत्य है. महा maAananmnnnnnnnnnnnnnnnnnnar प्रकाशकामाबादुर बामसुखदेवसहा भ ज्वालाममादजी । Jain Education Interational For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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