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________________ - nomwww -ष्टाङ्ग जत धर्मर 41 का प्रथम श्रुतस्कन्ध 4 तं अस्थितामे उट्ठाणे कम्मेवले वौरिए पुरिसक्कार परिव सद्धा घिद संवेगे तं जाव तामे अत्थि उढाणे कछम्मे बले वीरिए पुरिसक्कार परिवाम सद्धाधीइ संवेगे जावयमे धम्मायरिए धम्मोवएमए समणे भगवं महावीरे जिणे सुहत्थी बिहरइ ताव मे सेयं कल पाउप्पभाए रयणीए जाव तेयसा जलंते सम्णं भगवं महावीर बंदित्ता मंसित्ता, समणणं भगवया महावीरेणं अब्भणुण्णायसमाणस्स सयमेव पंचमहन्वयाई आरोहेत्ता गोयमादिए समणे जिग्गंथ णिग्गंत्यीआय खामेत्ता तहारूवेहि कडाइहिं थेरह सद्धि विउल पव्वयं सणियं २ दुरुहित्ता सयमेव मेहवसाणगाम पुहविसिला } पट्टयं पडिले हत्ता, सलहणाए झूसणाए झूसियस्त भत्तपाणपडियाइक्खियस्त वीर्य, पुर।कार पराक्रम, श्रद्धा व धृति रहे हुवे हैं उस से जब लग मेरे में उत्थान यावत् श्रद्धा व धृति हैं और जहां लग मेरे मर्धा चार्य धर्मोपदेशक श्री श्रपण भगवंत महावीर स्वामी सुख पूर्वक विचरते हैं। वहां लग में प्रातःकाल होने श्रमण भगवान महावीर स्वामी को बंदना नमस्कार कर उन की अज्ञानुमार स्य मेव पांच महावन की आराधना कर गौतमादि निर्गन्थों निग्रधिनियों को खपाकर तयारूप कडाइ स्थविरों को साथ लेकर महान पर्वत को शनै: चडकर स्वयम मेव मेघ समान धनाकार पृथ्वी शिलापट्ट की मालिएना कर संलेखना यूसना से आत्मा को झोंस कर, भक्त पान का प्रत्याख्यान कर पादोप' उत्क्षिप्त मेषकुमारका प्रथम अध्ययन 41 अर्थ | For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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