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________________ १४८ .40 अनुदक-सलमान श्री अफ कऋषिजी तवेणं अवचिए मंससौपिएणं हुपासणे ३३ भातरासिपारछिपण, तवणं तेएणः ।। तवतेय सिरीए अईव २ उसोभेमाणे २ चिट्ठइ ॥ १७९ ॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं सभगो भावं महावरे आइगरे तिस्थगरे जाव पुवाणुपवं चरमाणे गामाणु. गाम दुइज्जमाणे सुदंसहेणं विहरमाणे जेणामेव रायगिह गयर, जणामेव गुणतिलए चेइए तणामेव उवागच्छइ २ त्ता अहापडिरूवं उग्गहं उगिहित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावमाणे विहरइ ॥ २८० ॥ तएणं तस्स मेहस्स अगगारस्स राओ पुत्ररत्तावरतकालसमयास धम्मजागरियं जागरमाणस्त अयमेयारूवे अज्झथिए जाव समुप्पजित्था एवं खलु अहं इमेणं उरालेणं तहेव जाव भासं भासिरमामितिगिलाइ अगि दीप्त रहा है तैसे ही मेघ अनगार तप तेन से तप की लक्ष्मी से अती शोभायमान बना हुआ है. ॥ ११२ ॥ उस काल उस समय में धर्म की आदिकरनेवाले तीर्थंकर श्री महावीर स्वामी यावत् पूर्ण पूरि चलते ग्र मानु ग्राम निचरते हु। राजगृहे। नगरी के गुण भील उद्यान में यथा पनि रू। अवग्रह याचकर संयम व तप से अ'त्मा को भाने हुरे विचरते थे॥ १८० ॥ उम सब मेघ अन्गार को पूर्व व पश्चात गात्र में धर्म जागर गा करते ऐमा अध्यामाय हुआ कि इस उदार तर कर्म में मेरा शरीर क्षीण हाया है यावत् भाषा वालाते भी हैं ग्लानि पाता हूं, इसलिये जहां तक मेरे में उत्थान धर्म,बर • पकायक-राजाबहाद लाला मुखदेवमहायजी ज्वालाप्रम। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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