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अथ
अर्थ
ताधर्मकथा का प्रथम अत
सस्सिएणं पयतेनं पग्गहिएणं कखाणं सिवेणं घण्णेणं मंगलेणं उदग्गेणं उदारएणे उत्तमेण मुक्क भुक्खे लुक्ले निम्नंसे निस्मोजिए कि डेकि डियाभूए अम्माण कि धमणिस नए जाएयाचि होत्था, जीव जीवणं गच्छइ, जीवं जीवजं चिट्ठ, भासं भासिता गिलाई, भासं भासमाणे गिलाई, भासं भासिस्तमिति गिलाई ॥ से जहा नामए इंगालसागडियाइवा, कटुसंगडिया इवा, पत्तसगडियाइत्रा, तिलदंड सगडियाइवा, एरंडक साडिय इवा, उण्हेदिण्णा सुदासमणी; ससद्वं गच्छइ, सरु चिट्टा एवामंत्र मेहं अणगारे ससदं गच्छ३, ससद्दं चिट्ठइ. उबचिट्ठ:
गुरुने दिया हुवा, कल्याणकारी, निरुपद्रवकारी, धन्यकारी, मंगलकारी, उदार, उत्तम व महानुभाव तप कर्म से शुष्क, रुक्ष हावा रूवर मौन रहित, कड २ शब्द करनेवाला, हड्डी व चर्म से बद्ध, वनसी की जालवाला होगया. जीव [मन] के दल ने चलता है, मन के बल मे खड रहता है भाषा ब हा विचारकर बालत खदित होता है, भाषा वो पीछ भी खदेत होता है. इस का कोप से हुई गाडीबाट की गड, पत्री गाडी, तिल के मूके कष्ट की गडे, मी हुए गडा सूर्य के लार से शुष्कबी हुई जब चलत है उसका मैने शब्द होता है वैसे ही बघ अमनार के शरीर का रूढ २ ६६६ होने लगा तब से रूविर मांस सूक जाने पर भी भस्म में जैसा
कहते है-जैसे एरंड का
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4-18+ (बेधकुमार) का प्रथम अध्ययन
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