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पष्टाङ्ग बासापर्कथा का प्रथम वसंघ
मोसे तीसंतिम २ पंचदसमे मासे बत्तीसतिम २ सोलसमे मासे चउतीसतिम २ अणिखित्तेणं तबोकम्मेणं दियाट्टाणुक्कडएगं. सुराभिमुहे आयावणभूमीए आयावेमाणे रनि वीरासणेणं अवाउडएणं ॥ १७७ ॥ तएणं से मेहे अणगारे गुणरयण संवच्छा तवोकम्मं अहासुत्तं जाव सम्मं काएण, फासेइ पालेइ सोभेइ तीरेइ किटेइ, अहासुत्तं अहाकप्पं जाव किहिता समणं भगवं महावीर दइ णमंसइ ३ त्ता बहूहि छटुट्ठम दसम दु । से हैं मासद्धमासखमणेहिं विचित्तेहिं तपोकम्महिं अप्पाणं
भावेमाणे विहरइ ॥ १७८ ॥ तएणं से मेहे अणगारे तेणं उरालेणं विपुलणं दिन को उत्कटासन से आतापना भूमि में सूर्य की आतापना लेने लगे और रात्रि मे वस्त्र रहित धीरासन से रहने लगे उक्त दिनी पसे १.३ म स व सात दिन तपस्याके और ७३ पारण के होते हैं।।१७७॥ तब उन मेघ अणगारने गुणरत्न मंवत्सर तप सूत्रानुसार यावत् कम्पक प्रकार से कायासे स्पर्श किया, पाला, शुद्ध किया, पूर्णकिया, व कीर्ती की मूत्र नुसार यावत् कीर्ती कर श्रमग भगवान महावीर स्वामी को वंदना नमस्कार कर हत बेले, तेले, चोल, पचोले, अर्ध मास, मास खमण यो विचित्र प्रकार के तप कर्म से अ.स को.. भावते हुवे विचरने लगे. ॥ १७८ ॥ तत्र मेघ अनगार का शरीर उदार विगुल सश्रित
माक्षप्त प्रघकुमार का प्रथप अध्ययन
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