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________________ 4280 - भावार्थ षष्टमांग ज्ञाताधर्मकथा का प्रथम श्रुतस्कन्ध पण्णत्ता ? ॥ १॥ एवं खलु जंबु समणेर्ण जाव संपत्तेणं णायाणं एगणवीस अज्झय. णा पण्णत्ता. तंजहा-उक्खित्तणाए, संघाडे, अंडे, कुम्मेय, सेलेगे, तंबेय, रोहिणी, मल्ली, माइंदी, चंदीमाईय, दाबद्दवे, उदगणाए, मंडुक्के, तेयली, विय गंदिफले, अमरकंका, आइपणे, ससमाइय, अवरेय पंडरीय, णामाएगणवीसमे ॥ १०॥ जइणं भंते ! समणे जाव संपत्तेणं णायाणं एगुणवीसा अज्झयणा पण्णत्ता, तंजहा-उकि तणाए जाव पुंडरीएय ॥ पढ़मस्सणं भंते ! अझयणम्स के अटे पण्णत्ते ? ॥११॥ ॥२॥ अहो जम्बू ! श्रमण यावत् मोक्ष संप्राप्तने ज्ञाता के उन्नीस अध्ययन कहे हैं. जिन के नाम-१ उत्क्षिप्त मेघ कुमार हाथी के भव में ऊंचा पांव रखकर जीव रक्षा की उम का, २ संधात. चौर व शेठ को एक खोडे में रखा जिम का, ३ मयूर के अंडे का, ४ क-काच्छये का, ५ सेलक राजर्षि का, ६ तुम्ड का, १७ रोहिणी का, ८ मल्लीनाथजी का, १ माकंदी वणिक पुत्र का, १. चंद्रमा का, ११ दावदववृक्ष १०२ खाई के पानी के न्याय से सबद्धि प्रधानका.१३मंडुकर्न-नंदनमणियार का,१४तेनली पुत्र का, १५नंदी के फलका,२६ अमरकंका-दौपदीका,१७आकीर्ण जाति के घोडे का, १.८सुसमा-श्रेष्टि की पुत्री का और र पुंडरीक कुंडरिक का. यों उन्नीम अध्ययन के नाम सुचे॥१०॥ अहो भगवन्! जब श्रमया यावत् मोक्ष समाप्तने ज्ञाताके उन्नीस अध्ययन कहे तो उनमें पहिला अध्ययनका क्या अर्थ(भाव)कहा ॥१॥अहोई उत्क्षिप्त (मेघकुमार) का प्रथम अध्ययन 4.28 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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