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एवं खलु जंबु-तेणं कालणं तेणं समएणं इहेब जंबुद्दीवे भारहवासे दाहिणटु भरेहे .. रायगिहे णाम णयरे होत्था; वण्णओ गुणसीला चेइए वण्णओ ॥ १२ ॥ तत्थगं रायगिहे णयरे सेणिए णामं राया होत्था, महया हिमवंत वण्णओ ॥ १३ ॥ तस्सणं सेणियरस रणो णंदाणामं देवीहोत्था,सुकमाल पाणिपाया वण्णओ ॥ १४ ॥ तस्मणं सेणियस्स पुत्ते गंदादेवीए अत्तए अभएणामं कुमारे होत्था, अहीण जाव सुरूवे, साम दंड भेय उवप्पयाणा णीति सुप्पय उत्तणय विहण्णू ईहापोह मग्गण गवेसण, अत्थ
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भावार्थ
49 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषी
जम्बू ! उस काल उस समय में इस जम्बू द्वीप के भरत क्षेत्र के दक्षिण विभाग में राजगृह नामक नगर था, उस का वर्णन चंपा नगरी जैसे कहना. उस की ईशान कौन में गुणशील नायक उद्यान था ॥ १२॥ उस राजगृह नगर में अणक नामका राजा था. महा हिपर्वत पर्वत समान यावत् सब वर्णन करने योग्य था ॥ १४॥ उस श्रेणिक राजा को नंदा नाम भी राणी थी यह सूकोमल हस्त पांववाली बगरह वर्णना योग्य थी॥१४॥उस श्रेणिक राजाका पुन व नंदा माणिका आत्मज अभय कुमार था,वह सम्पूर्ण इन्द्रियोगलाभ यावत् सुरूप था.माम-परस्पर गुण बोलकर स्वजनकोलेह उत्पन्न करेमो, दंड-चौगदिकको दंड दे तथा शत्रुका बधि व धन लेवेतो भेद-शके परिवारको स्वाम्यादि ऊपरकास्नेह मीटाना फूटपडानामो,उपप्रदान नीतिसो धन लेकर देनकी रीति,व संप्रयुक्त व्यापार का नीति.इन नीतियों को जाननेवालाया.ईहा:विचार कर निर्णय करना,
काशक राजाबहादुर लाला सुखदवसहायजी ज्वालाप्रसादजी.
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