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46ष्टांग ज्ञाताधर्षकभाका प्रथाश्रत
मोचणं अवसेस काए समणाणं णिग्गंथाणं णिसट्टे तिकट ॥ पुणरवि समणं वंदइ । णमंसह २ त्ता एवं वाली इछामिण भंते ! इयानं सपरेर दोचंपिं पदावियं म्यान मंडविक व सामे आयारगोयर जामा माया उत्तिय धनमाइक्खओ ॥ नए सालमा कार सयभा पचाइ जब जाया माया उपियं घरतरकले. एवंदे णाय गंतव्यं एवं चिट्रियव्व, एवं णिसीयव्वं, एव तुहिरव्यं, एवं भुंजपन्न, एवं भाग्मिय उवाय, पागा भूयागं जीवाणं सत्ताणं संजमेण संजमियः ॥ तएणं स महे, समणस्स भगवओ महावीरस्त अयनेयारूवे धम्नियं बोले अहो भगान् ! आम के दो भेनों छ उकार शेष सा काया श्रण निको सपंग करता हूँ
कहकर एल अवाम र स्वामी कोकम सरकर खिलीहो भगान् ! में हूं कि मुझे दूका देव, अ.स्य हालले युदत करा यः इत् आप स्वयं ही मजाकार नीला सत्र मात्रा उज, श्रमण भगवान मह वीर स्वामीने मेघकुमार को दूसरी वक्त दक्ष दो गांवत् यावा मात्रामा उपदेश दिया. अहो मेघाईया समिति माहित-धूंजर प्रमाण भूपि देखकर चलना, निर्दोष भूमि में खडे रहन , भूमि प्रमार्न कर बैठना, भूमि प्रमाण कर सोना, यत्ना सहित मधूर वचन बोलना, और निद्रासे जाग्रत होकर प्राण,भून जीव व मत्तकी यत्नो करतो. तब मेघ अनगार श्रमख भगवान महा
उत्क्षिप्तामघकुमार ] का पथ अध्ययन
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