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अनुवादक-चालन हा वारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी, 8
उवएसं सम्म पडिच्छइ २ त्ता तहचिट्ठइ जाव संजमेणं संजमेइ ॥ तएणं सेमेहे अणगारे जाए इरियासमिए अणगार वण्णओ भाणियब्वओ ॥ १७१ ॥ तएणं सेमेहे अणगारे समणस्स भगवओ महावीरस्म अंतिए नहारूवाण थेराणं सामाइमाइयाई एकारस अंगाइ अहिजइ २ त्ता बहूहि चउत्थ छट्टम दसम दुवालसहि मासद्धमास
खमणेणं अप्पाणं भावमाणे विहरइ ।। १७२ ॥ तएणं समणे भाव महावीरं रायगिनओणयराओ गुणसिलाओ चेश्याओ पडिणिक्खमइ २ त्ता वहिया जणघय
विहारं विहरइ ॥ १७३ ॥ तएणं से मेहे अणगारे अण्णयाकयाइ समणं वर स्वामी का ऐसा धार्मिक उपदेश ग्रहण कर तैसे ही ईर्या समिति सहित जाने ला यावत् संयम सहित विचर ने लगे. उस समय मेघ अणगार मुत्रे वगैरह सब. अणगार का कथन उपाइ सूत्र से जानना. ॥१७॥ मेघ अणगर श्री श्रमण भगवान महावीर स्वामी की ममीप तथारूप श्रमण निन्थो की पास से सामायिकादि अग्यारह अंगका अध्ययन कर बहुत उपयाम, वेल, तेले, चौले, पचोले, अर्धमाम व मासक्षमण की तरस्या सहित आत्मा को भावते हुवे विचरने लगे ।। १७२ ।। भगवान महावीर स्वामी राजग्रही नगर
मणशील उद्यन से नीकलकर बाहिर जनपद विहार करने लग ॥ १७३ ।। एकदा श्रमण भगवन्
• प्रकाशक-राजावहादुर लारा सुखदेवमहायजी ज्यालाप्रमादजी .
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