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सममेव पंचमुट्टियं लोयं करेइ, जेणामेव समणे भगवे महावीरे तेणामेव उवागच्छइ २ता, समणं भगवं महावीरं तिखुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ२ चा वंदद णमंसदरत्ता एवं बयासी-आलित्तेणं भंते! लोए,पलितेणंभंते! लोए,अलित्तेपलितेणं भंते! लोए,जराए मर.
णय से जहाणामए के गाहावई आगारंसिग्झियायमाणंसि जे तत्थ भंडेभबई अप्पभारे मोल्लगुरुए तंगहाय आयाए एगंत अवकमई, एसमेणिच्छारिएसमाणे पच्छापुराएलोए हियाए सुहाए खमाए णिस्सेसाए आणुगामित्साए भविस्सई, एवामेव ममाविएगेआयारभंडे इ8 कंते पिए मणुणेमणामे एसमे निच्छारिए समाणे संसारवोच्छेयकरे भविस्सइ, तइच्छा । मिणं देवाणुप्पियाहिं सयमेव पन्चावियं, सयमेव मुंडावियं, सय मेव सेहावियं, सयमेव महावीर स्वामी की पास आये और आपण भगवंत महावीर को तीन वक्त वंदना नमस्कार कर ऐसे बोले अहो । भगवन!पा लोक आलिप्त मलित है अर्थात् अटीते पलीते जरा व मरणरूप अधिकर जलरहा है उस में से जैसे कोई गायापति अपना गृह जलने पर उस में से अल्पाभार ५ बहुमूल्यवाला भंडोपकरण लेकर एकांत में जाता है | क्योंकि-वही इस लोक में उसको हित सखब कल्याणका कर्ता होता है.ऐसे ही मेरा एक आचार आप भंडो-A
पकरण इष्ट,कांत,मिय,मनोड व मन को आनंदकारी है यही मेरा संसार नाश करनेवाला होगा. इसलिये रिमु - आप वयं प्रबजित करो, सयमेव पंडित करो, सयमेव दीक्षित करो, शिक्षित करो |
पहमांग-माताधर्मकया का प्रथम श्रुतस्कन्ध4.18
विन्स (मेषकुमार) का बथम अध्ययन
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