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________________ बनुवादक-पायाचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी + पुरच्छिम दिसीभार्ग अवकम्मेइ २त्ता सयमेव आमरणमहालंकार मुयइरचा. तएणं से मेहस्सकुमाररस माया हंसलक्खणेणं पडसाडएणं आभरण मल्लालंकारे पडिन्छ। २ त्ता हारवारिधार सिंदुवार, छिण्णमुत्तावलिप्पासाई अंसूणिविणि मुयमाणी २ रोयमाणी २ कंदमाणी २ बिलबमाणी ३ एवं क्यासी-जइयव्वं जाया ! घडियन्वं जाया! परिक्कमियचं आया! अस्सिचणं अट्रे जोपमाएअब्बं, भम्हपिणं एवमेवमग्गे भवओ तिकटु ॥ मेहस्स कुमारस्स अम्मापियरो समण भगवं महावीरं वंदई गमंसई २ चा, जामेवदिसं पाउम्भूया तामेवसिं पडिगया ॥ १२८ ॥ तएणं से मेहेकुमार उससमय मेघकुमारने श्रमण भगवंत महावीर स्वामीकी पाससे ईशान कौनमें गाकर स्वयंपेर धरण, माला अलंकार नीकाल दीये, वे उसकी माताने इस समान भत बस्त्र में सब अभरणपाला अलंकार लेकर लूटावा हार पानीकी धारावसिंदूर वृक्ष के पुष्प समान आंशू डालती हुई रोती हुई भकंद करती हुई,बविलापकरता है ऐसारोली-अहो पुर! संयम याचाकी यस्ना करना, शानादि गुन को प्राप्त करना, व तप मार्गमें पराकाम करना, पुरुषपनेका अभिमान सिद्ध करना,संयम अर्थ कदापि प्रमाद करना नहीं, और हमको भी या मार्ग यथायोग्य समय प्राप्त होवो. यों कहकर मेघकुमार के मानपिता श्रमण भगवंत पारीरको वंदना नमस्कार कर जाणे भाये थे वहां पीय गये ॥१२८॥ तत्पश्चात् मेपकुमारने स्वयमेव पंच मुष्टि लोच करके श्रमण, भगवत ।। .काशक-गजाबहादुर लाला मुखदेवमहावजी मालमसादजी. Dinmaamanam Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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