________________
48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
भाणिय चेट्ठिय विसालसंलाबुल्लावणिउण जुत्तो व्यारकुसला. आमेलगजमलजुयल वड़ियं. .. अब्भुण्णव पीणरइय संट्ठिय पओहरा, हिमरयंयकुंदेंदु पगासं सकोरंट मल्लदामं धवलं. आवत्तं छत्तं महाय सलीलं ओहारेमाणी चिट्रइ ॥ तएणं तस्स मेहस्स कुमारस्स दुवे वर तरुणीओ सिंगारागार चारुवेसाओ जाव कुसलाओ सीयंदुरूहंति मेहस्व कुमारस्स उभओपासिं णाणामणि कणगरयण महरिह,तवणिज जलविचित्त दंडाआसुहम बरदीह वालाओ संख कुंद दगरययमय महियं पुज सणिणगासाओ चामराओ गहाय सलीलं ओ
हारेमाणीओ २ चिट्ठइ ।। तएणं तस्स मेहस्स कुमारस्स एगावरतरुणी सिंगारागार जाव बाली, हसकर बोलनेवाली, शास्त्र का पठण करनेवाली, विशाल नेत्र की चेष्टा करनेवाली, संलाप उल्लाप में निपुण, लोक व्यवहार में कुशाल, परस्पर मीले हुए उन्नत राति मुख देनेवाले विशिष्ट स्थानवन्त पयोधर वाली स्त्री,बरफ चांदी या कुंद वृक्ष के पुष्प व चंद्र समान प्रकाश करनेवाला कोरंट पुष्पकी माला बाल मेघाडंबरनामक छत्र धारण करके लीला सहित डोलतीहुइ खडी रही. मेघकुमार की दोनों बाजुशृंगार के घर समान यावत् कुशल दा तरूणियों पालखी पर आरूढ होकर मेघकुमार की दोनों वाजु विविध प्रकारके मणि, कनक, रत्न वाले, बहुत योग्य, तपायाहुवा लालसुवर्ण समान विचित्र दांडीवाले, सूक्ष्म श्रेष्ठ लम्बे बालो बाले, शंख कुंद चांदि, पानी के कण, व अमृत फेन समान उञ्चल चापर को ग्रहण कर लीला सहित वीजनी (हलाती) हुई खर्ड
.प्रकाशक-राजबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी.
Jain Education Interational
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org