________________ चिरमाहितप्रयत्नैरपि धर्तुं यो हि शक्यते नैव।सत्यमनस्के तिष्ठति स समीरस्तत्क्षणादेव // 45 // स्पष्टा // 45 // तथा जातेऽभ्यासे स्थिरतामुदयति विमले च निष्कले तत्त्वे / मुक्त इव भाति योगी समूलमुन्मूलितश्वासः // 46 // स्पष्टा // 46 // तथा यो जाग्रदवस्थायां स्वस्थः सुप्त इव तिष्ठति लयस्थः। श्वासोच्छ्वासविहीनः स हीयते न खलु मुक्तिजुषः // 47 // स्पष्टा // 47 // तथा जागरणस्वप्नजुषो जगतीतलवर्तिनः सदा लोकाः / तत्त्वविदो लयमग्ना नो जाग्रति शेरते नापि // 48 // स्पष्टा // 48 // तथा भवति खलु शून्यभावः स्वप्ने विषयग्रहश्च जागरणे / एतद्वितयमतीत्यानन्दमयमवस्थितं तत्त्वम् // 49 // Jan Education For Personel Private Use Only www.jainelibrary.org