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________________ सूर्यप्रज्ञप्तिवृत्तिः मल०) ** ॥ १३॥ *5555 उज्जोवेंति तवेंति पगासेंति, एगे एवमाहंसु ता तिणि दीवे तिणि समुद्दे चंदिमसूरिया ओभासंति०, एगे ३प्राभृतम् एवमासु २, एगे पुण एवमाहंसुता अद्धचउत्थे दीवसमुद्दे चंदिमसूरिया ओभासंति उज्जोति तवेंति पगासिंति एगेएवमासु ३, एगे पुण एवमाहंसु ता सत्त दीवे सत्त समुद्दे चंदिमसूरिया ओभासिंति ४ एगे एव माहंसु ४, एगे पुण एवमाहंसु ता दस दीवे दस समुद्दे चंदिमसूरिया ओभासंति ४, एगे एवमाहंसु ५, एगे पुण एवमाहंसु, ता बारसदीवे वारस समुद्दे चंदिमसूरिया ओभासंति ४, एगे एवमासु ६, एगे पुण एवमाहंसु, बायालीसं दीवे बायालीसं समुद्दे चंदिमसूरिया ओभासंतिक(४),एगे एवमाहंसु ७, एगे पुण एवमाहंसु बावत्तरिं दीवे बावत्तरिं समुद्दे चंदिमसूरिया ओभासंति, एक(४),एगे एवमाहंसु८, एगे पुण एवमाहंसुतावातालीसं दीवसतं बायाल समुद्दसतं चंदिमसूरिया ओभासंति४ एगे एवमाहंसु ९, एगे पुण एवमासु, ता बावत्सरि समुहसतं चंदिमसूरिया ओभासंतिण्क(४)एगे एवमाहंसु१०, एगे पुण एवमाहंसुताबायालीसं दीवसहस्सं बायालं समुद्द-14 संहस्सं चंदिमसूरिया ओभासंति, एक(४), एगे, एवमाहंसु ११, एगे पुण एवमाहंसुताबावत्तरंदीवसहस्सं बावत्तरं समुद्दसहस्सं चंदिमसूरिया ओभासंति एक (४) एगे एवमाहंसु १२, वयं पुण एवं वदामो-अयण्णं जंबुद्दीवे सबद्दीवसमुदाणं जाव परिक्खेवेणं पण्णते, से णं एगाए जगतीए सवतो समंता संपरिक्खिसे, सा णं जगती ६३॥ तहेव जहा जंबुद्दीवपन्नत्तीए जाव एवामेव सपुवावरेणं जंबुद्दीवे २ चोइस सलिलासयसहस्सा छप्पन्नं च सलिलासहस्सा भवन्तीति मक्खाता, जंबुद्दीवे णं दीवे पंचचक्कभागसंठिता आहितातिवदेज्जा, ता कहं| www.jainelibrary.org For Personal & Private Use Only Jain Education International
SR No.600245
Book TitleSuryapragnptisutram
Original Sutra AuthorMalaygiri
Author
PublisherAgamoday Samiti
Publication Year1919
Total Pages606
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_suryapragnapti
File Size12 MB
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