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________________ सूर्यप्रज्ञ - तिवृत्तिः ( मल० ) ॥ ४५ ॥ पाओ सूरिए पुढविकार्यंसि उत्तिठ्ठ, एगे एव ं ५, एगे पुण एवमाहंसु ता पुरथिमिल्लाओ लोयंताओ पाओ सूरिए आउकायंसि उत्तिट्ठइ, से णं इमं तिरियं लोयं तिरियं करेइ करेत्ता पचत्थिमंसि लोयंतंसि पाओ सूरिए आउकायंसि विद्धंसंति, एगे एवमाहंसु ६, एगे पुण एवमाहंसु-ता पुरत्थिमातो लोगंतातो पाओ सूरिए आउकायंसि उत्तिइति, से णं इमं तिरियं लोयं तिरियं करेति २ ता पञ्चत्थिमंसि लोयंतंसि सायं सूरिए आउकासि पविसह, पविसित्ता अहे पंडियागच्छति २ ता पुणरवि अवरभूपुरत्थिमातो लोयंतातो पादो सूरिए आउकायंसि उत्तिट्ठति, एगे एव० ७, एगे पुण एवमाहंसु-ता पुरन्धिमातो लोयंताओ बहूई जोयणाई बहूई जोयणसताईं बहूइं जोयणसहस्साई उहुं दूरं उप्पतित्ता एत्थ णं पातो सूरिए आगासंसि उत्तिकृति से णं इमं दाहिणहं लोयं तिरियं करेति करेत्ता उत्तरडलोयं तमेव रातो, से णं इमं उत्तरद्धलोयं तिरियं करेइ २त्ता दाहिणडलोयं तमेव राओ, से णं इमाई दाहिणुत्तरडलोयाई तिरियं करेइ करिता पुरत्थिमाओ लोयंतातो बहूई जोयणाई बहुयाई जोयणसताई बहूई जोयणसहस्साई उहुं दूरं उप्पतिता एत्थ णं पातो सूरिए आगासंसि उत्तिट्ठति एगे एवमाहंसु ८ । वयं पुण एवं वयामो, ता जंबुद्दीवस्स २ पाईणपडीणायत ओदीणदाहिणायताए जीवाए मंडलं चउच्चीसेणं सतेणं छेप्ता दाहिणपुरच्छिसि उत्तरपञ्चत्थिमंसि य चउन्भागमंडलंसि हमीसे रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिजातो भूमिभागातो अट्ठ जोयणसताई उहूं उत्पतित्ता एत्थ णं पादो दुवे सूरिया उत्तिद्वंति, ते णं इमाई दाहिणुत्तराई Jain Education International For Personal & Private Use Only २ प्राभृत १ प्राभृतप्राभृतं 11 84 11 www.jainelibrary.org
SR No.600245
Book TitleSuryapragnptisutram
Original Sutra AuthorMalaygiri
Author
PublisherAgamoday Samiti
Publication Year1919
Total Pages606
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_suryapragnapti
File Size12 MB
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