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श्रीमलय.
६ सङ्ख्येयानि पदसहस्राणि पदाणेति एकादश लक्षा द्विपञ्चाशत्सहस्राणि इत्यर्थः, द्वितीयं तु व्याख्यानं प्रागिव भावनीयं। 8 उपासकगिरीया || से किं तं अंतगडदसाओ ?, अंतगडदसासुणं अंतगडाणं नगराई उजाणाई चेइआई वणसं
दशाधि. नन्दीवृत्तिः
अन्तकडाइं समोसरणाइं रायाणो अम्मापियरो धम्मायरिया धम्मकहाओ इहलोइअपरलोइआ इड्डि- दशाधि. ॥२३२॥ विसेसा भोगपरिच्चागा पव्वजाओ परिआगा सुअपरिग्गहा तवोवहाणाई संलेहणाओ भत्तप
सू. ५२-५३ चक्खाणाइं पाओवगमणाई अंतकिरिआओ आघविजंति, अंतगडदसासु णं परित्ता वायणा संखिज्जा अणुओगदारा संखेजा वेढा संखेज्जा सिलोगा संखेजाओ निज्जुत्तीओ संखेजाओ संगहणीओ संखेजाओ पडिवत्तीओ, से णं अंगट्टयाए अट्टमे अंगे एगेसुअखंधे अट्ठ वग्गा अट्ठ उद्देसणकाला अट्र समुद्देसणकाला संखेजा पयसहस्सा पयग्गेणं संखेज्जा अक्खरा अणंता गमा अणंता पज्जवा परित्ता तसा अणंता थावरा सासयकडनिबद्धनिकाइआ जिणपन्नजा भावा आ
॥२३२॥ घविनंति पन्नविनंति परूविजंति दंसिर्जति निदंसिर्जति उवदंसिजंति, से एवं आया एवं
२३ नाया एवं विन्नाया एवं चरणकरणपरूवणा आघविजइ, से तं अंतगडदसाओ ८॥ (सू. ५३)
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