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________________ औपपातिकम् ॥ ९४ ॥ प्पिया ! अम्ह इमीसे अगामियाए जाव अडवीए उद्गदातारस्स सव्वओ समंता मग्गणगवेसणं करित्तए त्तिकट्टु अण्णमण्णस्स अंतिए एअमहं पडिसुगंति २त्ता तीसे अगामियाए जाव अडवीए उद्गदातारस्स सव्वओ समंता मग्गणगवेसणं करेइ करिता उद्गदातारमलभमाणा दोचंपि अण्णमण्णं सद्दावेन्ति सदावेत्ता एवं | वयासी - इह णं देवाणुप्पिया ! उदग़दातारो णत्थि तं णो खलु कप्पर अम्ह अदिण्णं गिरिहत्तए अदिष्णं सातिज्जित्तए, तं मा णं अम्हे इयाणिं आवइकालंपि अदिष्णं गिण्हामो अदिष्णं सादिजामो मा णं अम्हं तवलोवे भविस्सह, तं सेयं खलु अम्हं देवाणुप्पिया ! तिदंडयं कुंडियाओ य कंचणियाओ | य करोडियाओ य भिसियाओ य छष्णालए य अंकुसए य केसरीयाओ य पवित्तए य गणेत्तियाओ य छत्तए य वाहणाओ य पाउयाओ य धाउरत्ताओ य एते एडित्ता गंगं महाणई ओगाहित्ता वालुअसंधारए संथरित्ता संलेहणाझोसियाणं भत्तपाणपडियाइक्खियाणं पाओवगयाणं कालं अणवकखमागाणं विहरित एत्तिकट्टु अण्णमण्णस्स अंतिए एअम पडिसुणंति, अण्णमण्णस्स अंतिए० पडिणित्ता तिदंडए य जाव एगंते एडेइ २ गंगं महाणई ओगार्हेतिरत्ता वेलुआसंथारए संथरंति वालुयासंधारयं दुरुहिंति वारता पुरत्याभिमुहा संपलियंकनिसन्ना करयलजावकद्दु एवं वयासी - णमोत्थु णं अरहंताणं जाव संपताणं, नमोऽत्थु णं समणस्स भगवओ महावीरस्स जाव संपाविउकामस्स, नमोऽत्थु णं अम्मडस्स परिव्वायगस्स अहं धम्मायरियस्स धम्मोवदेसगस्स, पुव्वि णं अम्हे अम्मडस्स परिव्वायगस्स अंतिए थूलगपाणाइ Jain Education International For Personal & Private Use Only अम्बड० सू० ३९ ॥ ९४ ॥ www.jainelibrary.org
SR No.600242
Book TitleAuppatiksutram
Original Sutra AuthorAbhaydevsuri, Dronacharya
Author
PublisherAgamoday Samiti
Publication Year1916
Total Pages244
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_aupapatik
File Size21 MB
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