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________________ प्रज्ञापनाया: मलय० वृत्ती. २०अन्तक्रियापदम् ॥३९६॥ णं भंते ! अंतकिरियं करेजा ?, गोयमा! अत्थेगइए करेजा, अत्थेगतिए णो करेजा । एवं नेरइए जाव वेमाणिए । नेरइए णं भंते ! नेरइएसु अंतकिरियं करेजा, गोयमा ! नो इणढे समटे । नेरइया णं भंते ! असुरकुमारेसु अंतकिरियं करेजा ?, गोयमा ! नो इणढे समटे । एवं जाव वेमाणिएसु । नवरं मयूसेसु अंतकिरियं करेजत्ति पुच्छा, गोयमा ! अत्थेगतिए करेज्जा अत्थेगतिए. णो करेजा । एवं असुरकुमारा जाव माणिए । एवमेव चउवीसं २ दंडगा भवन्ति । (सूत्रं २५५) नेरइया णं भंते ! किं अणंतरागया अंतकिरियं करेंति परंपरागया अंतकिरियं करेंति , गोयमा ! अणंतरागयावि अंतकिरियं करेंति परंपरागयावि अंतकिरियं करेंति । एवं रयणप्पभापुढविनेरइयावि जाव पंकप्पभापुढवीनेरइया, धूमप्पभापुढवीनेरइयाणं पुच्छा, गोयमा! णो अणंतरागया अंतकिरियं पकरेंति, परंपरागया अंतकिरियं पकरेंति, एवं जाव अहेसत्तमापुढवीनेरइया । असुरकुमारा जाव थणियकुमारा पुढवीउवणस्सइकाइया य अणन्तरागयावि अंतकिरियं पकरेंति परंपरागयावि अंतकिरियं पफरेंति, तेउवाउबेइंदियतेइंदियचउरिदिया णो अणंतरागया अंतकिरियं पकरेंति परंपरागया अंतकिरियं पकरेंति । सेसा अणंतरागयावि अंतकिरियं पकरेंति परंपरागयावि अंतकिरियं पकरेंति । (सूत्रं २५६) 'नेरइय अंतकिरिया' इत्यादि, प्रथमतो नैरयिकोपलक्षितेषु चतविशतिस्थानेष अन्तक्रिया चिन्तनीया। ततोऽनन्तरागताः किमन्तक्रियां कुर्वन्ति परम्परागता वा? इत्येवमन्तरं चिन्तनीयं, ततो नैरयिकादिभ्योऽनन्तरमागताः ॥३९६॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600241
Book TitlePragnapanopangamsutram Part 02
Original Sutra AuthorMalaygiri
Author
PublisherAgamoday Samiti
Publication Year1919
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_pragyapana
File Size9 MB
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