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________________ प्रज्ञापनाया: मलय० वृत्ती. 20000000 ॥४९॥ भंते ! वेदणिज कम्मे पुच्छा, गो० ! सब्वेवि ताव होजा सत्तविहबंधगा य अहविहबंधगा य एगविहबंधया य छविहर्व- २४कर्मब. धए य अहवा सचविहवंधमा य अट्ठविहबंधगा य एमविहबंधगा य छबिहबंधगा य अवसेसा, नारगादीया जाव वेमाणि- न्धपदं ता जहिं णाणावरणं बंधति तहि माणितबा, एवं मणूसा गं भंते ! वेदणिजं कम्मं बंधमाणा कति कम्मपगडीतो बंधति ?, गो० ! सवेवि ताव होज सत्तविहबंधगा य एगवि० १ अहवा सत्तविहबंधगा य एगवि० अट्ठविहबंधगे य२ अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य अहवि० ३ अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य छबिहबंधगे य ४ अहवा सत्तविहबंधगा य एगविह. छबिह० ५ अहवा सत्तविहबंधगा य एगवि० अट्ठविहबंधते य छविहबंधते य ६ अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य अढविहबंधते य छविहबंधगा य ७ अहवा सत्तविहबंधगा य एगवि० गा व अविहवं. छविहबंधगे य ८ अहषा सत्तविहबंधगा य एगवि० अट्ठवि० छबिहब०९एवं एए नव भंगा भाणियवा, मोहणिजं बंधमाणे जीवे कति०१, गो०! जीवेगिदियवजो तियभंगो, जीवेगिंदिया सत्तविहबंधगावि अढविहबंधगावि, जीवे में भंते ! आप कम्मं बंधमाणे कति कम्म०, मो०! नियमा अट्ट, एवं नेरइए जाव वेमाणिए एवं पुहुत्तेणवि, णामगोयअंतराइयं बंधमाणे जीवे कति०, गो०! जीवा णाणावरणिज्ज बंघमाणे जाहिं बंधति ताहि भाणितबो, एवं नेरइएवि, जाव वेमाणिए, एवं पुहुत्तेणवि भाणियत्वं ॥ (सूत्रं २९९) पण्णवणाए भगवईए चउवीसतिमं पयं समतं ॥ M॥४९॥ 'करणं भंते! कम्मपगडीओ पण्णत्तागो' इत्यादि, प्रागुपन्वतस्थालापकस्खेहोपन्यासो विशेषाभिधानार्थः, एवमुत्तरे-11 Jain Education International For Personal & Private Use Only wwww.jainelibrary.org
SR No.600241
Book TitlePragnapanopangamsutram Part 02
Original Sutra AuthorMalaygiri
Author
PublisherAgamoday Samiti
Publication Year1919
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_pragyapana
File Size9 MB
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