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श्रीराजमनी मलयगिरी
या वृत्तिः
॥ २६ ॥
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तए णं ते सूरियाभविमाणवासिणो बहवे वेमाणिया देवा देवीओ य पायत्ताणियाहिवइस्स देवस्स अंतिए एमट्ठे सोच्चा णिसम्म हट्टतुट्ठ जावहियया अप्पेगइया वंदणवत्तियाए अप्पेगइया पूयणवत्तियाए अप्पेगइया सक्कारवत्तियाए एवं संमाणवत्तियाए कोउहलवत्तियाए अप्पे ० असुयाई सुणिस्सामो सुयाईं अट्ठाई हेऊई पसिणाई करणाई वागरणाई पुच्छिस्सामो, अप्पेगइया सूरियाभस्स देवस्स वयणमणुयत्तमाणा अप्पेगतिया अन्नमन्नमणुयत्तमाणा अप्पेगइया जिणभत्तिरागेणं अप्पेगइया धम्मोति अप्पेगइया जीयमेयंति कट्टु सव्बिडीए जाव अकालपरिहीणा चैव सूरियाभस्स देवस्स अंतियं पाउब्भवंति । (सू०१३) । तए से सूरि या देवे ते सूरियाभविमाणवासिणो बहवे वेमाणिया देवा यदेवीओ य अकालपरिहीणा चेव अंतियं पाण्डभवमाणे पासति पासित्ता हट्ठतुट्ठ जाव हियए आभिओगियं देवं सहावेति आभिओ० २ सद्दावित्ता एवं वयासी - खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! अणेगखंभसयसंनिविट्टं लीलट्ठियसालभंजियागं ईहामियउसभतुरगनरमगरविहगवालगकिंनररुरुसरभचमरकुंजरवणलयपउमलयभत्तिचित्तं खंभुग्गयवरवइरवेइयापरिगयाभिरामं विज्जाहरजमलजुयलजंतजुत्तंपिव अच्चीसहस्समालिणीयं रूवगसहस्सकलियं मिसमाणं चक्खुल्लोयणलेसं सुहफासं सस्सिरीयरूवं घंटावलिचलियमहुरमणहरसरं सुहं कंतं दरिसणिज्जं णिउणोचियमिसिमिसिंतमणिरयणघंटियाजालपरिकखित्तं जोयणसयसहस्सविच्छिण्णं दिव्वं गमणसज्जं सिग्ध
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देवानां सूभान्तिके
| प्रादुर्भावः
० १३
दिव्ययानकारणं
सू० १४
॥ २६ ॥
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