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________________ श्रीराजप्रश्नी मलयगिरी | या वृत्तिः ॥ ८२ ॥ Jain Education Int 派佘派 佘、佘爭染态类*本* वेपुडतरेय खंभे खंभवाहासु खंभसीसेसु खंभपुदंतरेसु सुयीसु सुयीमुखे सु सूईफल एस ईपुतरे पक्खे पक्खवाहासु पक्खपेरंतेसु पक्खपुडंतरेसु बहुयाई उप्पलाई पउमाई कुमुयाई णलिणातिं सुभगाई सोगंधियाई पुंडरीयाई महापुंडरीयाणि सयवत्ताई सहस्सवत्ताई सवरयणामयाई अच्छाई पडिख्वाइं महया वासिक्कयछत्तसमाणाई पण्णत्ताई समणाउसो !, से एएणं अद्वेणं गोयमा ! एवं बुच्चइ - पउमवरवेइया २ । पउमवरवेइया णं भंते! किं सासया० १, गोयमा ! सिय सासया सिय असासया, से केणद्वेणं भंते! एवं बुच्चइ - सिय सासया सिय असासया ?, गोयमा ! याए सासया वन्नपज्जवेहिं गंधपज्जवेहिं रसपज्जवेहिं फासपज्जवेहिं असासया, से तेणट्टेणं गोयमा ! एवं बुच्चति - सिय सासया सिय असासया । पउमवरवेइया णं भंते! कालओ केवचिरं होइ ?, गोमा ! ण कयाविणासि ण कयावि णत्थि न कयावि न भविस्सइ, भुविं च हवइ य भविस्सइ य, धुवाणिया सासवा अक्खया अहया अवट्टिया णिचा पउमवरवेइया । से णं वणसंडे देणाई दो जोयणाई चक्कवाल विक्खंभेणं उवयारियालेणसमे परिक्खेवेणं, वणसंडवण्णतो भाणितो. जाव विहरति । तस्स णं उवयारियालेणस्स चउदिसिं चत्तारि तिसोवाणपडिरूवगा पण्णत्ता वण्ण तोरणा झया छत्ताइच्छत्ता, तस्स णं उवयारियालयणस्स उवरिं बहुसमरमणिले भूमिभागे पण्णत्ते जाव मणीणं फासो ॥ ( सू० ३४ ) 1 ओ, For Personal & Private Use Only ***40******469)*40*6 पन्न वर वेदि काय. सू० ३४ ॥ ८२ ॥ jainelibrary.org
SR No.600237
Book TitleRajprashniyasutram
Original Sutra AuthorMalaygiri
Author
PublisherAgamoday Samiti
Publication Year1925
Total Pages302
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_rajprashniya
File Size6 MB
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