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व्याख्याप्रज्ञप्तिः अभयदेवीया वृत्तिः २
॥ ९५२ ॥
स्सइकाइयाणंति, अनंत रोववन्नग सुहुमपुढ विकाइया णं भंते! कति कम्मप्पगडीओ बंधंति ?, गोयमा ! आउयवज्जाओ सत्त कम्मप्पगडीओ बंधंति, एवं जाव अणंतरोववन्नगबादरवणस्सइकाइयत्ति । अणंतरोववन्नग| सुहमपुढविकाइया णं भंते ! कइ कम्मप्पगडीओ वेदेति ?, गोयमा ! चउद्दस कम्मप्पगडीओ वेदेति, तं०नाणावरणिज्जं तहेव जाव पुरिसवेदवज्झं, एवं जाव अनंतशेववन्नगबादरवणस्स इकाइयति । सेवं भंते! सेवं भंतेति ॥ ( सूत्रं ८४५ ) ॥ ३३२ ॥ कतिविहा णं भंते! परंपरोववन्नगा एगिंदिया प० १, गोयमा ! पंचविहा परंपरोववन्नगा एगिंदिया प० तं०- पुढविक्काइया एवं चउक्कओ भेदो जहा ओहिउद्देसए । परंपरोववन्नग अप| जत्तसुहमपुढविकाइयाणं भंते ! कह कम्मप्पगडीओ प०१, एवं एएणं अभिलावेणं जहा ओहिउद्देसए तहेव | निरवसेसं भाणियवं जाव चउद्दस वेदेंति । सेवं भंते ! २त्ति ॥ ( सूत्रं ८४६ ) ३३३ ॥ अनंतरोगाढा जहा अणंतरोववन्नगा ४ ॥ परंपरोगाढा जहा परंपरोववन्नगा ५ ॥ अनंतराहारगा जहा अणंतरोववन्नगा ६ ॥ | परंपराहारगा जहा परंपरोववन्नगा ७ ॥ अणंतरपज्जत्तगा जहा अणंतरोववन्नगा ८ ॥ परंपरपज्जत्तगा जहा परंपरोववन्नगा ९ ॥ चरिमावि जहा परंपरोववन्नगा तहेव १० ॥ एवं अचरिमावि ११ ॥ एवं एए एक्कारस | उद्देसगा । सेवं भंते! २ जाव विहरइ ॥ ( सूत्रं ८४७ ) पढमं एगिंदियस सम्मत्तं ॥ ३३ ॥ १ ॥ कइविहा णं | भंते! कण्हलेस्सा एगिंदिया प० १, गोयमा ! पंचविहा कण्हलेस्साएगिंदिया प०, तं० - पुढविकाइया जाव वणस्सइकाइया । कण्हलेस्सा णं भंते! पुढविकाइया कहविहा प०१, गोयमा ! दुबिहा पं० तं० - मुहमपुढवि
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३२ शतके उद्दे. २८ उद्वर्त्तना सू
८४१-८४२
३३ शतके
अवान्तर
शत. १२
एकेन्द्रियभेदादि सू
८४३-८४८
॥ ९५२ ॥
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