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व्याख्या.
प्रज्ञप्तिः अभयदेवीया वृत्तिः २
॥ ९४७ ॥
यवं, एवं सहजीवाणं जाव वेमाणियाणं, नवरं अणंतरोववन्नगाणं जं जहिं अत्थि तं तहिं भाणियवं । किरियावाई णं भंते! अणंतरोववन्नगा नेरइया किं नेरइयाज्यं पकरेह ? पुच्छा, गोयमा ! नो नेरइयाउयं पकरेंति नो तिरि० नो मणु० नो देवाउयं पकरेह, एवं अकिरियावादीचि अन्नाणियवादीवि वेणइयवादीवि । सलेस्सा णं भंते! किरियावादी अनंतशेववन्नगा नेरइया किं नेरइयाउयं पुच्छा, गोयमा ! नो नेरइयाज्यं पकरेइ जाव नो देवाउयं पकरेइ एवं जाव वेमाणिया, एवं सङ्घट्टाणेसुवि अनंतरोववन्नगा नेरइया न किंचिवि आउयं पकरेह जाव अणागारोवउत्तत्ति, एवं जाव वेमाणिया नवरं जं जस्स अस्थि तं तस्स भाणियां । किरियावादी णं भंते! अणंतरोववन्नगा नेरइया किं भवसिद्धिया अभवसिद्धिया ?, गोयमा ! भवसिद्धिया नो अभवसि - द्विया । अकिरियावादी णं पुच्छा, गोयमा ! भवसिद्धियावि अभवसिद्धियावि, एवं अन्नाणियवादीवि वेणइयवादीवि । सलेस्सा णं भंते! किरियावादी अनंतशेववन्नगा नेरहया किं भवसिद्धिया अभवसिद्धिया ?, गोयमा ! भवसिद्धिया नो अभवसिद्धिया, एवं एएणं अभिलावेणं जहेव ओहिए उद्देसए नेरइयाणं वत्तवया भणिया तहेव इहवि भाणियता जाव अणागारोवउत्तत्ति एवं जाव वैमाणियाणं नवरं जं जस्स अत्थि तं तस्स भाणिय, इमं से लक्खणं-जे किरियावादी सुक्कपक्खिया सम्मामिच्छदिट्ठीया एए सबे भवसिद्धिया नो अभवसिद्धीया, सेसा सबै भवसिद्धीयावि अभवसिद्धीयावि । सेवं भंते! इति ॥ (सूत्रं ८२६) || ३०|२|| परंपरो| ववन्नगा णं भंते! नेरहया किरियावादी एवं जहेब ओहिओ उद्देसओ तहेव परंपरोववन्नएसुवि नेरइयादीओ
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३० शतके उद्दे. २- ११ अनन्तरो* त्पन्नादीनांसम सू |८२६-८२८
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