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________________ जानामिच्छत्तं ओहिनाणं विभंगवामाणविभंगनाणनोसन्नोवत्ता जहा नेरइयाणं तहेव ते तागा, बितिया भंगा। सलेस्सेणं भंते ! अणंतरोववन्नए नेरइए पावं कम्मं किं बंधी पुच्छा, गोयमा ! पढमबितिया भंगा, एवं खलु सवत्थ पढमबितिया भंगा, नवरं सम्मामिच्छत्तं मणजोगो वइजोगो य न पुच्छिजइ, एवं जाव थणियकुमाराणं, बेइंदियतेइंदियचउरिंदियाणं वयजोगो न भन्नइ, पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणंपि सम्मामिच्छत्तं ओहिनाणं विभंगनाणं मणजोगो वयजोगो एयाणि पंच पदाणि ण भन्नति । मणुस्साणं अलेस्ससम्मामिच्छत्तमणपज्जवणाणकेवलनाणविभंगनाणनोसन्नोवउत्तअवेद्गअकसायीमणजोगवयजोगअजोगिएयाणि एक्कारस पदाणि ण भन्नति, वाणमंतरजोइसियवेमाणियाणं जहा नेरइयाणं तहेव ते तिन्नि न भन्नंति सबेसि, जाणि सेसाणि ठाणाणि सवत्थ पढमबितिया भंगा, एगिदियाणं सवत्थ पढमबितिया भंगा, जहा पावे एवं नाणावरणिजेणवि दंडओ, एवं आउयवजेसु जाव अंतराइए दंडओ॥ अणंतराववन्नए णं भंते ! नेरइए आउयं कम्मं किं बंधी पुच्छा, गोयमा ! बंधी न बंधइ बंधिस्सइ । सलेस्से णं भंते ! अणंतरोववन्नए नेरइए आउयं कम्मं किं बंधी?, एवं चेव ततिओ भंगो, एवं जाव अणागारोवउत्ते, सवत्थवि ततिओ भंगो, एवं मणुस्सवजं जाव वेमाणियाणं, मणुस्साणं सवत्थ ततियचउत्था भंगा, नवरं कण्हपक्खिएसु ततिओ भंगो, सवेसिं नाणत्ताई ताई चेव । सेवं भंते !२त्ति ॥ (सूत्रं ८१५)॥ बंधिसयस्स बितिओ॥ २६-२॥ 'अणंतरोववन्नए णमित्यादि, इहाद्यावेव भङ्गौ अनन्तरोपपन्ननारकस्य मोहलक्षणपापकर्माबन्धकत्वासम्भवात् , तद्धि SUSALAMAULMS ण सवत्थ पढमवितियाणयाणं जहा नेरयाणवजोगअजोगि-/5/ dain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600226
Book TitleBhagwati sutram Part 03
Original Sutra AuthorAbhaydevsuri
Author
PublisherAgamoday Samiti
Publication Year1921
Total Pages654
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size13 MB
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