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________________ 50%AL व्याख्या- | तृतीय उपशमकसूक्ष्मसम्परायस्य चतुर्थःक्षपकसूक्ष्मसम्परायस्य, एवं लोभकषायिणामपि वाच्यं, 'कोहकसाईणं पढम: २६ शतके प्रज्ञप्तिः। बीय'त्ति इहाभव्यस्य प्रथमो द्वितीयो भव्यविशेषस्य तृतीयचतुर्थों त्विह न स्तो वर्तमानेऽबन्धकत्वस्याभावात् 'अक- उद्देशः १ अभयदेवी साईण'मित्यादि, तत्र 'बंधी न बंधई बंधिस्सइ'त्ति उपशमकमाश्रित्य, 'बंधी न बंधइ न बंधिस्सइ'त्ति क्षपकमाश्रित्येति, नारदीनां या वृत्तिः२ योगद्वारे-'सजोगिस्स चउभंगोत्ति अभव्यभव्यविशेषोपशमकक्षपकाणां क्रमेण चत्वारोऽप्यवसेयाः, 'अजोगिस्स चरमो'त्ति | पापज्ञाना वबन्धिद बध्यमानभन्त्स्यमानत्वयोस्तस्याभावादिति ॥ त्वादिसू . नेरइए णं भंते! पावं कम्मं किं बंधी बंधइ बंधिस्सइ ?, गोयमा! अत्थेगतिए बंधी पढमबितिया १, सलेस्से ८१२-८१३ भंते! नेरतिए पावं कम्मं चेव, एवं कण्हलेस्सेवि नीललेस्सेवि काउलेसेवि, एवं कण्हपक्खिए मुक्कपक्खिए, सम्मदिट्ठी मिच्छादिट्ठी सम्मामिच्छादिट्ठी, णाणी आभिणियोहियनाणी सुयनाणी ओहिणाणी अन्नाणी मइअन्नाणी सुयअन्नाणी विभंगनाणी आहारसन्नोवउत्ते जाव परिग्गहसन्नोवउत्ते, सवेदए नपुंसकवेदए, सकसायी जाव लोभकसायी, सजोगी मणजोगी वयजोगी कायजोगी, सागारोवउत्ते अणागारोवउत्ते, एएसु सवेसु पदेसु पढमबितिया भंगा भाणियवा, एवं असुरकुमारस्सवि वत्तवया भाणियवा नवरं तेउलेस्सा इत्थिवेयगपुरिसवेयगा य अन्भहिया नपुंसगवेदगा न भन्नंति सेसं तं चेव सवत्थ पढमवितिया भंगा, एवं जाव। ॥९३०॥ थणियकुमारस्स, एवं पुढविकाइयस्सवि आउकाइयस्सवि जाव पंचिंदियतिरिक्खजोणियस्सवि सवत्थवि पढमबितिया भंगा नवरं जस्स जा लेस्सा, दिट्टी णाणं अन्नाणं वेदो जोगो य जं जस्स अस्थि तं तस्स भाणि Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600226
Book TitleBhagwati sutram Part 03
Original Sutra AuthorAbhaydevsuri
Author
PublisherAgamoday Samiti
Publication Year1921
Total Pages654
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size13 MB
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