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________________ व्याख्या प्रज्ञप्तिः अभयदेवी- या वृत्तिः२ ॥७९०॥ षष्ठोद्देशके पृथिव्यादीनामाहारो निरूपितः, स च कर्मणो बन्ध एव भवतीति सप्तमे बन्धो निरूप्यते, इत्येवंसम्बद्ध- २० शतके स्यास्येदमादिसूत्रम् उद्देशः७ कविहे णं भंते ! बंधे प०?, गोयमा ! तिविहे पं०२०-जीवप्पयोगबंधे १ अणंतरपओगबंधे २ परंपरबंधे जीवप्रयोग३। नेरइयाणं भंते ! कइविहे प० एवं चेव, एवं जाव वेमाणियाणं । नाणावरणिजस्स णं भंते ! कम्मस्स बन्धादि कइविहे बंधे प०?, गोयमा ! तिविहे बंधे प००-जीवप्पयोगबंधे अणंतरबंधे परंपरबंधे, नेरइयाणं भंते ! सु६७४ नाणावरणिजस्स कम्मरस कइविहे बंधे प० एवं चेव जाव वेमाणियाणं, एवं जाव अंतराइयस्स । णाणावरणिज्जोदयस्स णं भंते ! कम्मस्स कइविहे बंधे प०१, गोयमा ! तिविहे बंधे पं० एवं चेव एवं नेरइयाणवि एवं जाव वेमाणियाणं, एवं जाव अंतराइउदयस्स, इत्थीवेदस्स णं भंते ! कइविहे बंधे प०१, गोयमा ! तिविहे | बंधे प०, एवं चेव, असुरकुमाराणं भंते ! इत्थीवेदस्स कतिविहे बंधे प० १, गो ! तिविहे बंधे प० एवं चेव एवं जाव वेमाणियाणं, नवरं जस्स इथिवेदो अत्थि, एवं पुरिसवेदस्सवि एवं नपुंसगवे० जाव वेमाणियाणं, नवरं जस्स जो अत्थि वेदो, दंसणमोहणिजस्स णं भंते! कम्मस्स कइविहे बं, एवं चेव निरंतरं जाव वेमा०, एवं चरित्तमोहणिजस्सवि जाव वेमाणियाणं, एवं एएणं कमेणं ओरालियसरीरस्स जाव कम्मगसरीरस्स आहारसनाए जाव परिग्गहस० कण्हलेसाए जाव मुक्कलेसाए सम्मदिट्ठीए मिच्छादिट्ठीए सम्मामिच्छादि ॥७९०॥ हीए आभिणिबोहियणाणस्स जाव केवलनाणस्स मइअन्नाणस्स सुयअन्नाणस्स विभंगनाणस्स एवं आभि Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600226
Book TitleBhagwati sutram Part 03
Original Sutra AuthorAbhaydevsuri
Author
PublisherAgamoday Samiti
Publication Year1921
Total Pages654
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size13 MB
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